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हेय-ज्ञेय-उपादेयरूप ज्ञाता की चाल
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जैसे :॥ निमित्त कहै मोकों सबै, जानत है जग लोय। । तेरो नाम न जान ही, उपादान को होय?
(भैया भगवतीदास) उत्तर - भाई, जगत के अज्ञानी ऐसी अध्यात्म बात को भले न जानें, किन्तु जगत के सभी ज्ञानी और सर्वज्ञ तो यह बात बराबर जानते हैं। जैसे
उपादान कहे रे निमित्त! तू कहा करे गुमान। | मोकों जाने जीव वे, जो हैं सम्यक् ज्ञान ।
(भैया भगवतीदास) जो इस अध्यात्म का स्वरूप जानते हैं, वे ही मुक्ति को पाते हैं; अज्ञानी को तो निश्चय-व्यवहार की कुछ खबर ही नहीं है अर्थात् वह यह बात जानता नहीं है और मानता भी नहीं है। जो जीव यह बात जान लेते हैं, वे अज्ञानी रहते नहीं हैं। यह तो आत्महित की अपूर्व अलौकिक बात है। ऐसे स्वावलम्बी मोक्षमार्ग का स्वरूप जो समझ लें, उसको मोक्षमार्ग · प्रगट हुए बिना नहीं रहे। -*
सम्यग्दृष्टि कैसा है, वह क्यों नहीं डरता? उसके (सम्यग्दृष्टि के) हृदय में आत्मा का स्वरूप दैदीप्यमान प्रगटरूप से प्रतिभासता है। वह ज्ञानज्योति को लिए आनन्दरस से परिपूर्ण है। वह अपने को साक्षात् पुरुषाकार, अमूर्तिक, चैतन्यधातु का पिण्ड, अनन्त अक्षय गुणों से युक्त, चैतन्यदेव ही जानता है। उसके अतिशय से ही वह परद्रव्य के प्रति रंचमात्र भी रागी नहीं होता। वह अपने निजस्वरूप को ज्ञाता-दृष्टा, परद्रव्यों से भिन्न, शाश्वत और अविनाशी जानता है और परद्रव्य को तथा रागादिक.को क्षणभंगुर, अशाश्वत, अपने स्वभाव से भलीभाँति भिन्न जानता है - इसलिए सम्यग्ज्ञानी कैसे डरे? - पण्डित गुमानीरामजी : समाधि-मरणस्वरूप
.. (मोक्षमार्गप्रकाशक, पृष्ठ ३४०