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________________ सम्यग्दृष्टि द्वारा मोक्षपद्धति की साधना भाव से विमुख होना – यह निश्चय नहीं हो सकता अर्थात् मोक्षमार्ग नहीं सध सकता। शुभराग छोड़ने योग्य है अथवा रखने योग्य है - ऐसा निर्णय भी जो न कर सके, उसकी परिणति राग से विमुख होकर स्वभाव सन्मुख कैसे हो? उसकी परिणति तो अस्थिर ही रहेगी अर्थात् चैतन्य में स्थिर हुए बिना वह मोक्षमार्ग का साधन नहीं कर सकेगा। तीसरा पुरुष जो विभ्रम-बुद्धि से सीप को चाँदी ही मानकर अंगीकार कर रहा है, उसे भी सीप छोड़कर चाँदी ग्रहण करने का अवकाश नहीं है। उसीप्रकार मूढजीव भ्रमबुद्धि से शुभरागादि परभाव को ही दृढ़तापूर्वक मोक्षमार्ग मान रहा है, इसलिए उसको भी राग छोड़कर वीतराग स्वभाव की तरफ ढलने का अवकाश नहीं है अर्थात् वह भी मोक्ष को नहीं साध सकता। शुभराग मोक्ष का साधन है - ऐसा विपरीत निर्णय करनेवाला जीव राग से हटकर वीतराग स्वभाव में कहाँ से आयेगा? इसप्रकार संशय, विमोह व विभ्रमवाला जीव मोक्षमार्ग को नहीं साध सकता; यथार्थवस्तु के दृढ़निर्णय वाला ही मोक्षमार्ग को साधता है। चौथा पुरुष स्पष्ट जानता है कि यह तो निश्चितरूप से सीप ही है, चाँदी नहीं। वह सीप और चाँदी - दोनों के यथार्थ स्वरूप को पहचानता है। हजार मनुष्य सीप को चाँदी कहें, तथापि अपने सम्यक् निर्णय में उसे शंका नहीं होती। उसी प्रकार धर्मी जीव अपने चिदानन्द स्वरूप में निःशंक . है, स्व-पर तथा स्वभाव-परभाव को बराबर भिन्न जानता है; अध्यात्मपद्धतिरूप शुद्धपरिणति ही मोक्षमार्ग है और आगमपद्धतिरूप विकारपरिणति मोक्षमार्ग नहीं है, वह तो बन्धमार्ग ही है - ऐसा वह निश्चित जानता है, उसमें वह अत्यन्त निःशंक और दृढ़ है। हज़ारोंलाखों मनुष्य विपरीत मानें या कहें तो भी अपने सम्यक्-निर्णय. में उसे सुन्देह न पड़ें, निर्णय में किंचित् भी ढील न आवे, वही निःशंकपने स्वभाव की तरफ ढलकर मोक्षमार्ग को साध लेता है।
SR No.007132
Book TitleParmarth Vachanika Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla, Rakesh Jain, Gambhirchand Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2008
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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