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________________ गाथा ९८ : निश्चयप्रत्याख्यानाधिकार ८१ करके उसमें एकाग्र होना ही सच्चा प्रत्याख्यान है; इसलिए यहाँ 'बन्ध रहित आत्मा की भावना करो' - ऐसी शिक्षा दी है । बन्धन में चार प्रकार हैं । उनमें से प्रकृति और प्रदेश का कारण तो योग का कम्पन है तथा स्थिति और अनुभाग का कारण चारों कषाय हैं। सोलहकारण भावना का जो शुभराग है, उससे भी आत्मा की शान्ति प्रगट नहीं होती, अपितु कर्म का बन्ध होता है; इसलिए शुभाशुभ भाव अथवा मन-वचन-काय की क्रिया आत्मा के संवर या प्रत्याख्यान का कारण नहीं हैं, प्रत्याख्यान का कारण तो कर्मसम्बन्ध रहित चैतन्य की भावना करना ही है । अकेले योग में शुभ-अशुभपना नहीं होता, उसमें शुभ-अशुभपना तो कषाय मिलने पर कहा जाता है और उससे कर्मबन्ध होता है । जिस भाव से कर्म बँधता है, उस भाव से प्रत्याख्यान नहीं हो सकता । आत्मा के भान बिना सच्चा सामायिक अथवा सच्चा प्रत्याख्यान होता ही नहीं । एक समय की सामायिक अथवा संवर अल्पकाल में मुक्ति प्रदान करता है, परन्तु ऐसी सामायिक अज्ञानी के नहीं होती । ३” इस गाथा और उसकी टीका में मात्र यही कहा गया है कि बंध चार प्रकार का होता है । उनमें प्रकृति और प्रदेश बंध तो योग से और स्थिति तथा अनुभाग बंध कषाय से होते हैं । यहाँ कषाय शब्द में मिथ्यात्व, अविरति और प्रमाद भी शामिल समझने चाहिए; क्योंकि महाशास्त्र तत्त्वार्थसूत्र में बंध के कारण पाँच बताये हैं; जो इसप्रकार हैं - मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद, कषाय और योग । इनमें से योग प्रकृति- प्रदेश बंध का कारण है, शेष चार स्थितिअनुभाग बंध के कारण हैं । अतः यहाँ कषाय शब्द से कषायान्त का १. नियमसार प्रवचन, पृष्ठ ७८६ २. वही, पृष्ठ ७८६ - ७८७ ३. वही, पृष्ठ ७८७ -
SR No.007131
Book TitleNiyamsar Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2010
Total Pages270
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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