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________________ १३४ नियमसार अनुशीलन जो सहजतत्त्व अखण्डित है, शाश्वत है, सभी दोषों से दूर है, उत्कृष्ट है, भवसागर में डूबे हुए जीवों को नाव के समान है तथा प्रबल संकटों के समूहरूपी दावानल को बुझाने के लिए जल समान है; उस सहजतत्त्व को मैं प्रमोद भाव से नमस्कार करता हूँ। आध्यात्मिकसत्पुरुष श्री कानजी स्वामी इस छन्द के भाव को इसप्रकार स्पष्ट करते हैं - “वह सहजतत्त्व भवसागर में डूबते जीवों के लिए तैरती हुई नौका के समान है और संकटों के समूहरूपी दावानल को शान्त करने के लिए जलसमान है। उस सहजतत्त्व की तरफ ढलते ही संसार का दावानल शान्त हो जाता है - ऐसे उस सहजतत्त्व को मैं प्रमोद पूर्वक सतत् नमस्कार करता हूँ। देखो! ऐसे सहजतत्त्व के बहुमान बिना वास्तविक चारित्र अथवा प्रत्याख्यान नहीं होता है; इसलिए इस सहजतत्त्व की महिमा बताई है।" जिस सहजतत्त्व के गीत विगत छन्द में गाये गये हैं; उसी की महिमा इस छन्द में भी बता रहे हैं। कहा जा रहा है कि वह सहजतत्त्वरूप भगवान आत्मा अखण्डित है, शाश्वत है, निर्दोष है, उत्कृष्ट है, संसारसमुद्र में डूबते लोगों को बचाने के लिए नाव के समान है और संकटरूपी दावानल को शान्त करने के लिए जल समान है; इसलिए मैं उस सहजतत्त्व को प्रमोदभाव से नमस्कार करता हूँ।।१४९|| आठवाँ छन्द इसप्रकार है - (पृथ्वी) जिनप्रभुमुखारविन्दविदितं स्वरूपस्थितं मुनीश्वरमनोगृहान्तरसुरत्नदीपप्रभम् । नमस्यमिह योगिभिर्विजितदृष्टिमोहादिभिः नमामि सुखमंदिरंसहजतत्त्वमुच्चैरदः ।।१५० ।। १. नियमसार प्रवचन, पृष्ठ ८७२-८७३
SR No.007131
Book TitleNiyamsar Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2010
Total Pages270
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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