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________________ 98 जैन धर्म : सार सन्देश जो समस्त द्रव्यों के (अनन्त) पर्यायों को जाननेवाला है, सब जगत को देखने जानने का नेत्र है तथा अनन्त है, एक है और अतीन्द्रिय है, अर्थात् मति, श्रुत ज्ञान के समान इन्द्रियजनित नहीं है, केवल आत्मा से ही जाना जाता है, उसको विद्वानों ने केवल ज्ञान कहा है। केवल ज्ञान कल्पनातीत है, विषय को जानने में किसी प्रकार की कल्पना नहीं है, स्पष्ट जानता है तथा आपको और पर को दोनों को जानता है। जगत का प्रकाशक है, सन्देहरहित, अनन्त और सदा काल उदयरूप है तथा इसका किसी समय भी किसी प्रकार से अभाव नहीं होता है।32 वास्तव में यह केवल ज्ञान ही पूर्ण रूप से सच्चा ज्ञान या सम्यग्ज्ञान है और यही ज्ञान की पराकाष्ठा है। ___ जैसे सूर्योदय होने पर तारों का प्रकाश लुप्त हो जाता है, उसी प्रकार केवल ज्ञान के उदय होने पर मति, श्रुत, अवधि और मनःपर्यय-ये चारों ज्ञान लुप्त हो जाते हैं। ___ एक आत्मा में एक से लेकर चार तक ज्ञान हो सकते हैं। यदि एक ज्ञान होता है, तो वह केवलज्ञान है। यदि दो होते हैं, तो मति और श्रुत ज्ञान होंगे। यदि तीन हों, तो मति, श्रुत और अवधि या मति, श्रुत और मनःपर्यय ज्ञान होंगे। यदि चार हों, तो मति, श्रुत, अवधि और मनःपर्यय ज्ञान होंगे। एक साथ पाँचों ज्ञान नहीं हो सकते, क्योंकि यदि किसी को केवलज्ञान होगा तो वह अकेला ही होगा, अन्य चारों ज्ञान विलीन हो जायेंगे। सम्यग्ज्ञान की महिमा बताते हुए जैनधर्मामृत में कहा गया है: । इस संसाररूपी उग्र (तपते हुए) मरुस्थल में दुःखरूपी अग्नि से संतप्त जीवों को यह सत्यार्थ ज्ञान ही अमृत रूपी जल से तृप्त करने के लिए समर्थ है, अर्थात् संसार के दुःख मिटानेवाला सम्यग्ज्ञान ही है। जब तक ज्ञानरूपी सूर्य का सातिशय (पूर्ण रूप से) उदय नहीं होता है, तभी तक यह समस्त जगत् अज्ञानरूपी अन्धकार से आच्छादित (ढका) रहता है, किन्तु ज्ञान के प्रकट होते ही अज्ञान का विनाश हो जाता है।
SR No.007130
Book TitleJain Dharm Sar Sandesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Upadhyay
PublisherRadhaswami Satsang Byas
Publication Year2010
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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