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जीव, बन्धन और मोक्ष बनाकर बन्धन-मुक्त होने का कौन-सा उपाय है। दूसरे शब्दों में, हम किस साधना को अपनाकर, अर्थात् किस मार्ग पर चलकर मोक्ष की प्राप्ति कर सकते हैं ? अब हम इसी प्रश्न के उत्तर पर विचार करेंगे।
मोक्ष-मार्गः रत्नत्रय जब जीव अपने अज्ञानवश राग, द्वेष, मोह, लोभ, अहंकार आदि मनो-विकारों का शिकार होकर अपने निर्मल स्वरूप को भुला देता है तब उसे अपने कर्तव्य का ज्ञान नहीं रहता। वह नहीं समझ पाता कि उसे अपने वास्तविक हित के लिए क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए। इस कारण वह उचित मार्ग से भटक जाता है। इसके फलस्वरूप वह संसार के आवागमन के चक्र में पड़कर दुःख भोगता रहता है। इससे छुटकारा पाने, अर्थात् मोक्ष की प्राप्ति के लिए, जीव को अपने वास्तविक स्वरूप को पहचानना अत्यन्त आवश्यक है। अपने वास्तविक स्वरूप का साक्षात्कार करने और आत्म-स्वरूप में स्थिर होने के लिए सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक चारित्र को दृढ़ता से धारण करने की आवश्यकता होती है। इन्हें ही मोक्ष-मार्ग कहा जाता है। तत्त्वार्थाधिगम सूत्र के प्रथम सूत्र में ही कहा गया है:
सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः । अर्थ-सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक् चारित्र का मेल मोक्ष-मार्ग है।
मोक्ष-मार्ग का अर्थ है जीव की विशुद्धि का मार्ग, जीव का अपने स्वरूप में स्थापित होने का मार्ग, जीव के अज्ञान और दःखों का सदा के लिए अन्त करने का मार्ग और जीव का अपने अनन्त गुणों से युक्त हो सदा के लिए सुख-शान्ति प्राप्त करने का मार्ग।
सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र को ही 'रत्नत्रय' कहते हैं, क्योंकि ये तीनों रत्न के समान अत्यन्त ही दुर्लभ और अनमोल हैं। इन्हें दुर्लभ इसलिए कहा गया है, क्योंकि एक तो परमार्थ या आध्यात्मिकता में रुचि रखनेवाले, अर्थात् मोक्षाभिलाषी जीव ही बहुत कम पाये जाते हैं और दूसरे, यदि कुछ मोक्षाभिलाषी जीव हों भी तो मोक्ष-मार्ग की दुर्गमता को देख इस पर अन्त तक चलते रहने का