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जीव, बन्धन और मोक्ष
जीव और अजीव की भिन्नता जैन धर्म के अनुसार संसार के सभी पदार्थों को मूलतः दो भागों में बाँटा जाता है-(1) जीव और (2) अजीव। इनका वास्तविक स्वरूप एक-दूसरे से बिल्कुल भिन्न है। जीव तत्त्व चेतना और जीवन-शक्ति से युक्त होता है, जबकि अजीव तत्त्व चेतना और जीवन-शक्ति से रहित होता है। जैन धर्म में बताये गये जीव के अतिरिक्त अन्य पाँचों पदार्थ-(1) पुद्गल (भौतिक तत्त्व या परमाणु ), (2) धर्म (गति तत्त्व), (3) अधर्म (स्थैर्य तत्त्व), (4) आकाश
और (5) काल (समय)-अजीव के ही भेद हैं। जीव और शरीर को एक समझना भारी भूल है। जीव को कभी भी निर्जीव शरीर का गुण अथवा शरीर से उत्पन्न होनेवाली कोई चीज़ नहीं समझनी चाहिए। यद्यपि प्रत्येक प्राणी का निर्माण जीव और निर्जीव तत्त्व (शरीर) की मिलावट से हुआ है, फिर भी प्रत्येक प्राणी में मिले जीव और शरीर का वास्तविक स्वरूप भिन्न-भिन्न है। निर्जीव तत्त्वों से बने शरीर को जीव तत्त्व (आत्मा) से मिले होने के कारण ही जीवित कहा जाता है। शरीर से जीव के अलग होते ही शरीर निर्जीव बन जाता है। जिस प्रकार हम अपनी बाहरी इन्द्रियों द्वारा बाहरी निर्जीव वस्तुओं या पदार्थों को देखते अथवा उनका अनुभव करते हैं, उसी प्रकार हम अपनी आन्तरिक दृष्टि द्वारा जीव (आत्मा) का भी अपने अन्तर प्रत्यक्ष अनुभव कर सकते हैं।