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________________ 62 जैन धर्मः सार सन्देश इस प्रकार हम निश्चित रूप से कह सकते हैं कि जैन धर्म का दृष्टिकोण अत्यन्त ही उदार है और इसे सही रूप से अपनाने पर कोई भी व्यक्ति इससे निष्पक्षता और उदारता की प्रेरणा ले सकता है। जैन धर्म क्या नहीं है? जैन धर्म का लक्ष्य मोक्ष की प्राप्ति है और धर्म ही इसका साधन है। इससे स्पष्ट है कि धर्म से बढ़कर इस संसार में अन्य कोई चीज़ नहीं। इसलिए धर्म के वास्तविक स्वरूप को समझकर इसका दृढ़ता से पालन करना हमारा सबसे प्रमुख कर्तव्य है। पर जो चीज़ जितनी ही अच्छी होती है उसकी उतनी ही अधिक नक़ल इस संसार में होने लगती है। इसलिए धर्म के नाम पर भी संसार में बहुत-सी ऐसी चीजें चल पड़ी हैं, जो वास्तव में धर्म नहीं हैं, फिर भी वे न केवल सीधे-सादे साधारण जनों को बल्कि बड़े-बड़े समझदार और बुद्धिमान व्यक्तियों को भी भ्रम में डालकर गुमराह कर देती हैं। इसलिए जनहित की दृष्टि से जैन धर्म हमें यह बताने की कोशिश करता है कि जैन धर्म क्या नहीं है, अर्थात् जैन विचारधारा के अनुसार किसे धर्म नहीं कहते। __हम देख चुके हैं कि धर्म का सम्बन्ध किसी बाहरी वस्तु से नहीं, बल्कि अपनी आत्मा से है। इसलिए आन्तरिक साधना द्वारा आत्मशुद्धि कर आत्मा के वास्तविक स्वरूप की पहचान न करना और भ्रमवश बहिर्मुखी क्रियाओं में लगे रहना धर्म नहीं हैं। जब तक मन से राग-द्वेष, मोह तथा क्रोध, मान, माया, लोभ आदि को निकालकर इसे शुद्ध नहीं किया जाता तब तक आत्मा की शुद्धि और मुक्ति की प्राप्ति नहीं हो सकती। इसलिए बहिर्मुखी क्रियाओं को सही अर्थ में धर्म नहीं कहा जा सकता। शुभचन्द्राचार्य ने अपने ज्ञानार्णव ग्रन्थ में बड़ी ही स्पष्टता के साथ कहा है: निःसन्देह मन की शुद्धि से ही जीवों की शुद्धि होती है, मन की शुद्धि के बिना केवल काय को क्षीण करना व्यर्थ है: 62 वे फिर कहते हैं: जो व्यक्ति चित्त की शुद्धि प्राप्त किये बिना भले प्रकार मुक्त होना चाहता है वह केवल मृगतृष्णा की नदी में जल पीता है। अर्थात् मृगतष्णा में
SR No.007130
Book TitleJain Dharm Sar Sandesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Upadhyay
PublisherRadhaswami Satsang Byas
Publication Year2010
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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