________________
382
जैन धर्मः सार सन्देश दौलतराम : पण्डित श्री दौलतराम जी का जन्म हाथरस में हुआ। वे एक कवि थे। उन्होंने छहढाला काव्य की रचना की। संसार के जीवों को दुःख से छूटने का व सुख की प्राप्ति का पथ दिखानेवाली यह छहढाला सब जैनों के लिये उपयोगी
है। यह बहुत जगह पाठशालाओं में पढ़ाई जाती है। पद्मनन्दि, आचार्य : जैन साहित्य में इस नाम के अनेक ग्रन्थकार हुए हैं। आचार्य पद्मनन्दि द्वारा रचित अनेक कृतियों में अनित्य भावना ग्रन्थ प्रमुख है। वे अध्यात्म के विशेष प्रेमी थे।
भारिल्ल, हुकुमचन्दः डॉ. हुकुमचन्द भारिल्ल एक प्रख्यात विचारक थे। उन्होंने जैन
साहित्य पर बहुत-सी पुस्तकें लिखीं जिनमें तीर्थंकर महावीर और उनका सर्वोदय , तीर्थ, बृहज्जिनवाणी संग्रह, वीतराग-विज्ञान पाठमाला, निमित्त-उपादान, नयचक्र आदि प्रमुख हैं। श्री कानजी स्वामी उनके गुरु थे। उन्हें कई पुरस्कारों से नवाज़ा गया जैसे कि 'वीर निर्वाण भारती अवॉर्ड।' वे अखिल भारतीय दिगम्बर जैन परिषद् के अध्यक्ष भी रह चुके हैं।
लोढ़ा, कन्हैया लाल : श्री कन्हैया लाल लोढ़ा विपश्यना व पातञ्जल दोनों परम्पराओं
के उच्च स्तरीय साधक हैं। वे जैन दर्शन व ध्यान प्रणाली के भी प्रमुख विद्वान हैं। अपनी पुस्तक जैन धर्म में ध्यान में उन्होंने सभी प्रचलित साधना पद्धतियों व उनके अंतर्निहित सिद्धान्तों की पृष्ठभूमि में जैन धर्म में प्रतिपादित ध्यान प्रणाली
को प्रस्तुत किया है। वर्णी, गणेश प्रसादः श्री गणेश प्रसाद वर्णी जी का जैन समाज में विशेष स्थान है। बुन्देलखण्ड के जैन समाज में जैन संस्कृति, श्री गणेश प्रसाद वर्णी जी के अथक प्रयासों से ही जीवित रह सकी है। उन्होंने अनेक पाठशालाओं, विद्यालयों, शिक्षा-मन्दिरों और गुरुकुलों की स्थापना की। वे पहले वर्णी, फिर क्षुल्लक और
अन्तिम समय में दिगम्बर मुनि के पद के धारक हुए। देश भर में आपने धर्म प्रचार के लिये यात्राएँ कीं। आचार्य विनोबा भावे, बंगाल की प्रसिद्ध संत आनन्दमयी माँ, यहाँ तक कि भारत के पहले राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद भी उनके प्रति श्रद्धा और मान रखते थे। नरेन्द्र विद्यार्थी के सम्पादन में वर्णी-वाणी इनकी सबसे जानी-मानी रचना है।