________________
381
मुख्य ग्रन्थकार: संक्षिप्त परिचय जैन, नाथूराम डोंगरीय : पण्डित श्री नाथूराम जी इंदौर नगरी के प्रख्यात विद्वान हैं। इन्होंने जैन-धर्म नामक ग्रन्थ की रचना की। उनके पूर्वज मध्यप्रदेश के डोंगरा ग्राम के रहनेवाले थे जिससे आप डोंगरीय उपनाम से समाज में प्रसिद्ध हैं। आपने भगवान कुन्दकुन्दाचार्य द्वारा, दो हज़ार वर्ष पूर्व रचित एक अपूर्व आध्यात्मिक कृति समयसार जोकि प्राकृत भाषा में थी, को आधुनिक राष्ट्रीय भाषा हिन्दी के पद्यों में निर्माण कर समयसार वैभव के नाम से प्रस्तुत किया है।
जैन, हीरालाल : डॉ. हीरालाल जैन, जैन साहित्य के मर्मज्ञ विद्वान, अध्येता और अध्यापक थे। उन्होंने भगवान महावीर के बचनों पर आधारित अत्यन्त प्राचीन
और प्रामाणिक गाथाओं का संकलन किया जिसे जिनवाणी के नाम से जाना जाता है। डॉ. हीरालाल जी भारतीय ज्ञानपीठ के संचालक मंडल में थे और मूर्तिदेवी
ग्रन्थमाला के सम्पादक भी रहे। टोडरमल, पण्डित : पण्डित श्री टोडरमल जी जैन विद्वानों में महान् प्रतिभाशाली माने जाते हैं। वे एक गंभीर प्रकृति के आध्यात्मिक महापुरुष थे। स्वाभाविक कोमलता, सदाचारिता, जन्मजात विद्वत्ता के कारण गृहस्थ होकर भी 'आचार्यकल्प' कहलाने का सौभाग्य आपको ही प्राप्त है। पण्डित जी ने प्राचीन जैन ग्रन्थों की विस्तृत, गहन परन्तु सुबोध भाषा-टीकाएँ लिखीं। पण्डित टोडरमल जी की रचनाओं में सात तो टीका ग्रन्थ हैं और पाँच मौलिक रचनाएँ हैं। मोक्षमार्ग प्रकाशक पण्डित टोडरमल जी का महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है। इस ग्रन्थ का आधार कोई एक ग्रन्थ न होकर सम्पूर्ण जैन साहित्य है। देशभूषण जी महाराज, आचार्य : श्री आचार्यरत्न देशभूषण जी महाराज की प्राचीन ग्रन्थों को सरल और आधुनिक भाषा में प्रकाशित कराने में तीव्र रुचि रहती है। वे संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, कन्नड़, तमिल, मराठी, हिन्दी आदि अनेक भाषाओं के समर्थ विद्वान हैं। उनके द्वारा सम्पादित ग्रन्थों में रत्नाकर शतक और परमात्म प्रकाश प्रमुख हैं जो हिन्दी भाषा में प्रकाशित हो चुके हैं। देशाई, ब्रह्मचारी मूलशंकर : ब्रह्मचारी मूलशंकर देशाई श्रीतत्त्वसार, देव गुरु शास्त्र का स्वरूप और पंचलब्धि नामक पुस्तकों के रचयिता हैं।