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मुख्य ग्रन्थकारः संक्षिप्त परिचय शुभचन्द्राचार्य: आचार्य शुभचन्द्राचार्य जी ईसा पू. ग्यारहवीं सदी में हुए हैं। वे होयसला विष्णुवर्धन के शासनकाल के समय जैन मठाधीश थे। ऐसा कहा जाता है कि जब उन्होंने राजा का कष्ट दूर किया तो राजा ने खुश होकर उन्हें 'चारूकीर्ति' की पदवी से नवाज़ा। आचार्य शुभचन्द्राचार्य जी ज्ञानार्णव के रचयिता हैं। इस प्रसिद्ध रचना का दूसरा नाम योगार्णव है। इसमें योगीश्वरों के आचरण करने योग्य, जानने योग्य सम्पूर्ण जैनसिद्धान्त का रहस्य भरा हुआ है। जैनियों का यह एक अद्वितीय ग्रन्थ है। इसके पठन-मनन से जो आनन्द प्राप्त होता है, वह वचन अगोचर है। यह मानना ही होगा कि ऐसी स्वाभाविक, शीघ्रबोधक, सौम्य,
सुन्दर और हृदयग्राही संस्कृत कविता बहुत थोड़ी देखी जाती है। समन्तभद्र आचार्य : आचार्य समन्तभद्र ने रत्नकरण्ड श्रावकाचार नामक ग्रन्थ की रचना की। यह जैन श्रावकों की आदि आचार संहिता है। इसी कारण इसके प्रति सदैव एक असाधारण आकर्षण सभी में रहा है। मूलत: संस्कृत भाषा में होने के कारण कठिनाई से समझ में आनेवाला यह ग्रन्थ प्रायः प्रवचनों के माध्यम से ही जैनों तक पहुँचता रहा है।