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________________ जैन धर्म की प्राचीनता 33 12. दृष्टिवादः- यह अंग अप्राप्य है। इसके विषय में अन्य ग्रन्थों में कुछ उल्लेख मिलता है। 2) उपांग: उपांग भी बारह हैं। इनमें ब्रह्माण्ड का वर्णन, प्राणियों का वर्गीकरण, खगोल विद्या, काल-विभाजन, मरणोत्तर जीवन का वर्णन आदि प्राप्त होते हैं। 3) प्रकीर्ण : इनकी संख्या दस है। इनमें नाना विषयों का विवेचन है। ये प्रमुख ग्रन्थों के परिशिष्ट हैं। 4) छेद सूत्रः इनकी संख्या छः है। इनमें जैन-भिक्षुओं के लिए उपयोगी विधि नियमों का संकलन है। 5) मूल सूत्रः इनकी संख्या चार है। इनमें जैन धर्म के उपदेश, भिक्षुओं के __ कर्त्तव्य, विहार के जीवन, यम-नियम, आदि का वर्णन है। 6) चूलिका सूत्र : इसमें नान्दी सूत्र तथा अनुयोग द्वार शामिल हैं। ये दोनों जैनियों के स्वतन्त्र ग्रन्थ हैं जो एक प्रकार के विश्वकोष हैं। इनमें भिक्षुओं के लिए आचरणीय प्रायः सभी बातें लिखी गयी हैं। साथ ही साथ कुछ लौकिक बातों का भी विवरण मिलता है। उपर्युक्त सभी ग्रन्थ श्वेताम्बर सम्प्रदाय के जैनियों के लिए हैं। दिगम्बर सम्प्रदाय के लोग इनकी प्रामाणिकता को स्वीकार नहीं करते। उनका कथन है कि वीरसेन स्वामी तथा उनके बाद में आनेवाले आचार्यों को अपनी पूर्वपरम्परा से जैन साहित्य की जो भी जानकारी थी उसके आधार पर उन्होंने उन ग्रन्थों के नाम सहित उनमें वर्णित विषयों का विवरण अपनी रचनाओं में प्रस्तुत किया। आचार्य सिद्धान्तचक्रवर्ती नेमिचन्द्र ने अपने गोम्मटसार जीवकाण्ड में तथा महाकवि रइघू ने अपने गाथाबद्ध सिद्धान्तार्थसार में उक्त साहित्य का संक्षिप्त, पर महत्त्वपूर्ण परिचय दिया है। इन ग्रन्थों के अलावा दिगम्बर सम्प्रदाय में अन्य बहुत से स्वतन्त्र ग्रन्थ, भाष्य और टीकाग्रन्थ प्राकृत और संस्कृत में लिखे गये हैं। उनमें उमास्वाति रचित तत्त्वार्थाधिगम सूत्र (जो दिगम्बर सम्प्रदाय के अतिरिक्त श्वेताम्बर सम्प्रदाय में भी प्रमाणिक ग्रन्थ माना जाता है), भद्रबाहु रचित कल्पसूत्र, गुणधर रचित कसायपाहुड, धरसेन रचित षट्खण्डागम, यतिवृषभ रचित तिलोयपण्णत्ती,
SR No.007130
Book TitleJain Dharm Sar Sandesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Upadhyay
PublisherRadhaswami Satsang Byas
Publication Year2010
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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