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________________ जैन धर्म: सार सन्देश में पायी जाती है। इसलिए अभी जो मूल ग्रन्थ प्राप्त हैं उन्हें निम्नलिखित छ: वर्गों में रखा जा सकता है: 1) अंग साहित्यः जैन आगम में इसका सर्वप्रमुख स्थान है। इसके बारह अंग हैं जिनका संक्षिप्त परिचय नीचे दिया जा रहा है: 1. आचारांग सूत्रः- यह सबसे प्राचीन अंग है। इसमें जैन भिक्षुओं द्वारा पालन किये जानेवाले आचार नियमों का उल्लेख मिलता है। इसमें महावीर के उन उपदेशों का संकलन हुआ है जो उन्होंने अपने शिष्य सुधर्म को दिया था और जिसे सुधर्म ने अपने शिष्य जम्बू को सुनाया था। 2. सूत्रकृतांग:- इस अंग का मुख्य विषय है उन युवक साधकों के लिए चिंता जो नये-नये जैन धर्म में दीक्षित हुए थे। विरोधी मतों द्वारा दिये जानेवाले प्रलोभनों से नवदीक्षित साधुओं को सावधान किया गया है। 3/4. स्थानांग सूत्र और समवायांग सूत्र:- इनमें जैन दर्शन का भण्डार है और जैनाचार्यों के ऐतिहासिक चरित्र भी हैं। 5. भगवती सूत्र:- इसमें महावीर के जीवन तथा कृत्यों और अन्य समकालीन व्यक्तियों के साथ इनके सम्बन्ध का वर्णन मिलता है। अच्छे तथा बुरे कर्मों द्वारा प्राप्त होनेवाले स्वर्ग और नरक का भी वर्णन इसमें प्राप्त होता है। 6. ज्ञातृधर्म कथा:- इसमें महावीर की शिक्षाओं का वर्णन कथा, पहेलियों आदि के माध्यम से किया गया है। 7. उपासकदशा सूत्र:- इसमें जैन उपासकों के आचार, नियमों आदि का संग्रह है। तपस्या के बल पर स्वर्ग प्राप्त करनेवाले व्यापारियों का भी इसमें उल्लेख मिलता है। 8/9. अन्तकृद्दशा और अनुत्तरोपपासिक दशा:- इन दोनों में उन भिक्षुओं का वर्णन है जिन्होंने तप द्वारा शरीर का अन्त कर स्वर्ग प्राप्त किया है। 10. प्रश्न व्याकरण:- जैन धर्म से सम्बन्धित पाँच महाव्रतों तथा अन्य नियमों का वर्णन हुआ है। 11. विपाक सूत्रः- इस अंग में पाप और पुण्य कर्मों के बारे में बहुत सारी कथाएँ हैं।
SR No.007130
Book TitleJain Dharm Sar Sandesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Upadhyay
PublisherRadhaswami Satsang Byas
Publication Year2010
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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