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________________ जैन धर्म की प्राचीनता प्राचीन समय में जब लिखने की सुविधा का अभाव था, तब सभी भारतीय धर्मों की परम्परा श्रुतज्ञान के आधार पर ही चलती थी। सबसे प्राचीन भारतीय ग्रन्थ वेद का अस्तित्व भी अनेक शताब्दियों तक श्रुत-परम्परा के ही आधार पर क़ायम रहा। इसलिए इसे श्रुति भी कहते हैं। शिष्य द्वारा गुरु के मुख से सुने वचनों या उपदेशों को याद रखकर उन्हें फिर अपने शिष्यों को प्रदान करने की परम्परा को ही श्रुत-परम्परा कहते हैं। जैन धर्म और बौद्धमत के उपदेश भी कई शताब्दियों तक श्रुत-परम्परा के आधार पर ही जीवित रहे। जैन धर्म के सम्बन्ध में पहले यह कहा जा चुका है कि ईसा पूर्व 363 से 351 तक जब मगध में बारह वर्ष का अकाल पड़ा था उसी समय के बीच आचार्य स्थूलभद्र के नेतृत्व में जैन संघ का पहला सम्मेलन पाटलिपुत्र में बुलाया गया था। उस सम्मेलन में 11 अंगों का वाचन और संकलन किया गया था। पर आचार्य भद्रबाहु ने, जो उन दिनों दक्षिण भारत में होने के कारण इस सम्मेलन में शामिल नहीं थे, अपनी अनुपस्थिति में हुए संकलन को अस्वीकार कर दिया। अंत में करीब 800 वर्षों बाद 454 ईस्वी में आचार्य देवर्द्धि के नेतृत्व में वलभी में जैन संघ का दूसरा सम्मेलन हुआ जिसमें एकमत से स्वीकृत जैन धर्मग्रन्थों को लिखित रूप दे दिया गया। जैन धर्म के प्राचीनतम ग्रन्थों को पूर्व कहा जाता है, क्योंकि वे महावीर के पहले के माने जाते हैं। उनकी संख्या 14 कही जाती है। महावीर के समय में 12 अंगों की रचना हुई। पर बाद में दृष्टिवाद नामक बारहवाँ अंग और सभी पूर्व ग्रन्थ (जिन्हें दृष्टिवाद में सम्मिलित किया गया था) लुप्त हो गये। हरमन जाकोबी के अनुसार दृष्टिवाद में मुख्यतः महावीर के विरोधियों के विचारों का खण्डन किया गया था। इसलिए वह जैनियों के लिए जटिल और नीरस बन गया था। इसके अतिरिक्त बाद के अंग साहित्य में जैन मत के विचारों को स्पष्ट और सुव्यवस्थित रूप में उपस्थित किये जाने के कारण पूर्व साहित्य अनावश्यक लगने लगा और लोग उसे भूलते चले गये। 20 श्वेताम्बर और दिगम्बर–दोनों मतों के अनुसार सभी पूर्व ग्रन्थ लुप्त हो चुके हैं। केवल उन ग्रन्थों की सूची समवायांग नामक चौथे अंग और नन्दीसूत्र
SR No.007130
Book TitleJain Dharm Sar Sandesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Upadhyay
PublisherRadhaswami Satsang Byas
Publication Year2010
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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