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अन्तर्मुखी साधना
291 रत्नाकर शतक में भी इस मन्त्र का प्रभाव और फल बताते हुए कहा गया है:
इस मन्त्र के ध्यान से समस्त पाप दूर हो जाते हैं, आत्मा पवित्र हो जाती है और मोक्षरूपी लक्ष्मी के प्राप्त करने में विलम्ब नहीं होता है। इस णमोकार मन्त्र में ऐसी ही विचित्र शक्ति है, संसार का बड़े से बड़ा काम इसके स्मरणमात्र से सिद्ध हो जाता है। जो व्यक्ति भक्ति-भाव पूर्वक प्रतिदिन इस मन्त्र का जाप करते हैं, उनको ऐहिक सुखों के साथ पारलौकिक सुख भी प्राप्त होते हैं और संसार का परिभ्रमण चक्र इससे समाप्त होता है।
जिस समय गुरु पंचपरमेष्ठियों के नाम का उच्चारण करते हुए शिष्य को णमोकार (नमस्कारात्मक) मन्त्र की दीक्षा देते हैं उस समय मानो शिष्य के सौभाग्य का उदय हो जाता है। परमेष्ठियों के पाँच नामों को लेने, अर्थात् ग्रहण करने के समय ही शिष्य के बहुत से पाप कट जाते हैं और उसके जीवन की प्रवृत्ति परमार्थ की ओर हो जाती है। फिर धीरे-धीरे गुरु-मन्त्र के जाप के अभ्यास से उसके सभी कर्म नष्ट हो जाते हैं और वह मोक्ष का अधिकारी बन जाता है। ज्ञानार्णव में इसका संकेत इन शब्दों में किया गया है:
जिन भगवान् के नाम लेने से ही भव्य जीवों के अनादि काल से उत्पन्न हुए जन्ममरणजन्य समस्त रोग लघु (हलके) हो जाते हैं।
इस मन्त्रराज महातत्त्व को जिसने हृदय में स्थित किया उसने मोक्ष के लिए पाथेय (संवल) संग्रह किया।
जिस समय यह महातत्त्व मुनि के हृदय में स्थिति करता है उस ही काल संसार के सन्तान (सिलसिले) का अंकुर गल जाता है, अर्थात् टूट जाता है।
गुरु से नाम लेने, अर्थात् गुरु द्वारा दिये गये नाम को ग्रहण करने से जीव के पापों और दुःखों के मिट जाने का उल्लेख स्तुति-पाठ में भी इन शब्दों में किया गया है: