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जैन धर्म: सार सन्देश परदा भी हट जाता है तब प्रकाश आवरणरहित (सभी आवरणों या पर्दो से रहित) होकर पूर्णरूप से चमक उठता है। इसी प्रकार ज्ञान को ढकनेवाले पाँच परदे हैं।* 60
इन पर्यों को हटाने में गुरु-मन्त्र का अभ्यास अत्यन्त उपयोगी सिद्ध होता है। मन्त्र अनेक हो सकते हैं। पर जैसा कि णाणसार (ज्ञानसार) में कहा गया है, शिष्य को "गुरु उपदेशित ध्यान करना चाहिए।"61 ___ जो मन्त्र गुरु के मुख से उच्चारित होता है, अर्थात् जिस मन्त्र को गुरु अपने मुख से बोलकर शिष्य को प्रदान करते हैं, उसमें गुरु की अपार शक्ति समायी होती है। वह गुरु के स्वरूप के समान ही प्रभावशाली होता है और गुरु के स्वरूप को प्रकट करता है। इसलिए शिष्य को श्रद्धा और विश्वास के साथ गुरु-मन्त्र का लगातार स्मरण (सुमिरन) करते हुए गुरु के स्वरूप का ध्यान करना चाहिए।
गुरु-मन्त्र के स्मरण और ध्यान की अपार महिमा और अद्भुत फल का उल्लेख करते हुए ज्ञानार्णव में फिर कहा गया है: पंचपरमेष्ठियों को नमस्कार करने रूप है लक्षण जिसका ऐसे महामंत्र को चितवन करै, क्योंकि यह नमस्कारात्मक मंत्र जगत् के जीवों को पवित्र करने में समर्थ है। ___ जो जीव पाप से मलिन हैं वे इसी मन्त्र से विशुद्ध होते हैं और इसी मन्त्र के प्रभाव से मनीषिगण (बुद्धिमान् या विवेकी जन) संसार के क्लेशों से छूटते हैं।
भव्य जीवों को आपदा (विपत्ति) के समय यही मन्त्र इस जगत् में बांधव (मित्र) है। इसके अतिरिक्त अन्य कोई भी जीवों पर कृपा करने में तत्पर नहीं है।
भावार्थ-सबका रक्षक यही एक महामन्त्र है।62 * जैसैं दीपक के पांच पड़दे हैं। एक पड़दा दूरि भये, झीणा बारीक उद्योत भया। दूजा पड़दा दूरि
भया, तब चढ़ता प्रकाश भया। तीजा गये चढ़ता भया। चउथा गये अधिक चढ़ता भया। पांचवाँ गया तब निरावरण प्रकाश भया। ऐसें ज्ञानावरण के पांच पड़दे हैं। (टिप्पीणी 61 का मूल रूप)