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________________ 289 अन्तर्मुखी साधना णमोकार मन्त्र के ध्यान करने की यह विधि सर्वसाधारण के लिए उपयोगी है। इस विधि से मन स्थिर हो जाता है। व्यवहार में कार्य करनेवाली विधि यही है कि एकान्त स्थान में बैठ कर ललाट के मध्य में-भौहों के बीच इसका चिन्तन करे। इस मन्त्र के ध्यान से सभी प्रकार से सुख मिलते हैं। इस मन्त्र का जप तीन प्रकार से किया जाता है: वाचकः इस जप में शब्दों का उच्चारण किया जाता है अर्थात् मन्त्र को मुँह से बोल-बोलकर जप किया जाता है। उपांशुः इस जप में अन्दर से शब्दों के उच्चारण की क्रिया होती है। गले में मन्त्र के शब्द गूंजते रहते हैं पर मुख से नहीं निकल पाते। मानसः इस जप में शब्दों का बाहरी और भीतरी उच्चारण का प्रयास रुक जाता है, मन में मन्त्र का जप होता रहता है। यही क्रिया ध्यान का रूप धारण करती है। जैन धर्म के अनुसार यह मानस जप ही सर्वोत्तम विधि है जो सर्वाधिक प्रभावशाली और फलदायक सिद्ध होती है। जैसा कि ऊपर जैनधर्मामृत से दिये गये उद्धरण में बताया गया है, पंचपरमेष्ठी के पाँच नाम क्रम से विकसित हुई पाँच पारमार्थिक अवस्थाओं को सूचित करनेवाले इष्टों के नाम हैं। आन्तरिक ज्ञान का पूर्ण विकास क्रमशः पाँचों परदों के दूर हो जाने पर ही होता है। पंचपरमेष्ठियों के नाम का जप या सुमिरन आन्तरिक ज्ञान के पाँच परदों को दूर करने में अत्यन्त उपयोगी सिद्ध होता है। इस सत्य को अनुभव प्रकाश में दीपक पर पड़े हुए परदों के उदाहरण द्वारा इस प्रकार समझाया गया है : जैसे दीपक के ऊपर पाँच परदे पड़े हैं। जब एक परदा दूर होता है तो हल्का सा धुंधला प्रकाश होता है। दूसरा परदा दूर होने पर प्रकाश बढ़ जाता है। तीसरा परदा हटने पर प्रकाश और बढ़ जाता है। चौथा परदा हटने पर प्रकाश उससे भी अधिक तेज हो जाता है और जब पाँचवा
SR No.007130
Book TitleJain Dharm Sar Sandesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Upadhyay
PublisherRadhaswami Satsang Byas
Publication Year2010
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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