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जैन धर्म: सार सन्देश प्रचार में लगाया। कल्प सूत्र के अनुसार इन्होंने बिहार के हज़ारीबाग जिले के सम्मेद शिखर पर निर्वाण प्राप्त किया। उनके नाम पर उस शिखर को आज भी पारसनाथ पहाड़ी कहते हैं।
महावीर स्वामी का जीवन जैन धर्म के चौबीसवें या अन्तिम तीर्थंकर वर्द्धमान महावीर, बौद्ध धर्म के संस्थापक गौतम बुद्ध (जिनका समय ईसा पूर्व 563-483 माना जाता है) के समकालीन थे। वे बुद्ध से कुछ साल बड़े थे और बुद्ध से पहले इन्होंने परिनिर्वाण प्राप्त किया। इनका जन्म ईसा पूर्व 599 में हुआ और परिनिर्वाण ईसा पूर्व 527 में। षट्खण्डागम के टीकाकार स्वामी वीरसेन के कथन से इनके इस परिनिर्वाण-काल की पुष्टि होती है। षट्खण्डागम के वेदनाखण्ड के प्रारम्भ में वीरसेन कहते हैं कि शक सम्वत् के प्रारम्भ होने के ठीक 605 वर्ष तथा 5 मास पूर्व (अर्थात् लगभग ईसा पूर्व 527) में भगवान् महावीर का परिनिर्वाण हुआ।
बचपन में इनका नाम वर्द्धमान था और बाद में केवलज्ञान प्राप्त करने पर ये महावीर के नाम से प्रसिद्ध हुए। इनके पिता राजा सिद्धार्थ वैशाली के पास के कुण्डग्राम या कुण्डपुर (जिसे आजकल बसाढ़ कहते हैं) के रहनेवाले काश्यपवंशी क्षत्रिय थे और इनकी माता त्रिशला तत्कालीन वैशाली राजा चेटक की बहन थीं। इस तरह वैशाली के राजा चेटक इनके मामा थे जिनकी लड़की चेलना का विवाह मगध राजा बिम्बिसार से हुआ था। इस प्रकार अपनी माता के सम्बन्ध द्वारा ये वैशाली और मगध - दो प्रभावशाली राजघरानों से जुड़े हुए थे।
बचपन से ही वर्द्धमान की रुचि सांसारिक विषयों की ओर नहीं थी। फिर भी अपने माता-पिता के जीवनकाल तक वे उनके साथ रहे और उनकी इच्छा के अनुसार इन्होंने पारिवारिक जीवन बिताया। इनका विवाह यशोदा नामक एक रूपवती कन्या से हुआ जिससे इन्हें एक पुत्री पैदा हुई। पर दिगम्बर मत के अनुसार ये सदा अविवाहित रहे। जो भी हो, अपने माता-पिता के मरने के बाद 28 वर्ष (या कुछ के अनुसार 30 वर्ष) की अवस्था में अपने बड़े भाई नन्दिवर्धन की अनुमति लेकर इन्होंने घर-बार छोड़ दिया। घर-बार छोड़ने के एक वर्ष बाद इन्होंने वस्त्र का पूरी तरह त्याग कर दिया और नग्न रूप में