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अन्तर्मुखी साधना
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इस ध्यान द्वारा प्राप्त ज्ञान के आधार पर ही ज्ञानीजनों ने आगम या सद्ग्रन्थों की रचना की है। इस ध्यान के सम्बन्ध में सही और समस्त जानकारी केवल वे ही दे सकते हैं जो स्वयं ध्यान का अभ्यास कर पूर्ण ज्ञानी बन चुके हों। दूसरे शब्दों में, केवल अर्हत् देव या सच्चे गुरु से ही ध्यान की पूरी जानकारी प्राप्त हो सकती है। वे ही हमारे मन, वचन और काय की शुद्धि के उपायों तथा ध्यान के सभी भेदों और उनके अभ्यास की पूरी विधि को विस्तारपूर्वक और स्पष्टता के साथ समझा सकते हैं। इसीलिए स्वामी पद्मनन्दि कहते हैं:
योगतो हि लभते विबंधनम् योगतोपि किल मुच्यते नरः । योगवर्त्म विषमं गुरोर्गिरा बोध्यमेतदखिलं मुमुक्षुणा ॥
अथार्त् योग (मन, वचन और काय की क्रियाओं) को अशुद्ध रखने से कर्मों से बंध (बन्धन) होता है तथा शुद्ध योग से अवश्य यह मानव कर्मों से छूट जाता है। यद्यपि ध्यान का मार्ग कठिन है तथापि जो मोक्ष को चाहनेवाला है उसको गुरु के वचनों से इस सर्व (समस्त) ध्यान के मार्ग को समझ लेना चाहिए। 47
णाणसार (ज्ञानसार) में भी बार-बार कहा गया है कि गुरु प्रसाद (गुरु कृपा) से ही ध्यान तथा उसके सभी भेदों का ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है । उदाहरण के लिए, यह बताते हुए कि इस विषय का ज्ञान कैसे प्राप्त किया जाये ज्ञानसार में स्पष्ट कहा गया है:
ज्ञानं जिनैः भणित, स्फुटार्थवादिभिः विगतलेपः । तदेव निस्संदेहं ज्ञातव्यं गुरुप्रसादेन ॥ 48
अर्थ – जिन, अर्थात् जितेन्द्रिय सन्तरूप गुरु से, जो कर्मों से निर्लिप्त हों तथा सत्य का स्पष्ट रूप से उपदेश करते हों, ज्ञान को सन्देहरहित होकर गुरुप्रसाद (गुरुकृपा) से जानना चाहिए ।
ध्यान के भेदों को जानने और उनका अभ्यास करने के प्रसंग में भी गुरुप्रसाद का ही उल्लेख करते हुए इस पुस्तक में कहा गया है:
ध्यान के इन भेदों को गुरु के प्रसाद से जानना " अथवा गुरु के प्रसाद से ध्यान के भेदों का अभ्यास करो 50