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________________ 277 अन्तर्मुखी साधना तत्त्वदर्शी पुरुषों ने क्रूर आशय (हृदय) वाले प्राणी को रुद्र कहा है। उस रुद्र प्राणी के कार्य अथवा उसके भाव को रौद्र कहते हैं। हिंसा में आनन्द मानने से, मृषा (असत्य कहने) में आनन्द मानने से, चोरी में आनन्द मानने से और विषयों की रक्षा करने में आनन्द मानने से जीवों के रौद्र ध्यान भी निरन्तर चार प्रकार के होते हैं, अर्थात् हिंसानन्द, मृषानन्द, चौर्यानन्द और संरक्षणानन्द-ये चार भेद रौद्र ध्यान के हैं। 27gI&KIE आदिपुराण में इसकी पुष्टि इन शब्दों में की गयी है: जो पुरुष प्राणियों को रुलाता है वह रुद्र, क्रूर अथवा सब जीवों में निर्दय कहलाता है। ऐसे पुरुष का जो ध्यान होता है उसे रौद्रध्यान कहते हैं। यह रौद्रध्यान भी चार प्रकार का होता है। हिंसानन्द अर्थात् हिंसा में आनन्द मानना, मृषानन्द अर्थात् झूठ बोलने में आनन्द मानना, स्तेयानन्द (चौर्यानन्द) अर्थात् चोरी करने में आनन्द मानना और संरक्षणानन्द अर्थात् परिग्रह (संग्रह की गयी धन-सम्पत्ति) की रक्षा में ही रात-दिन लगा रहकर आनन्द मानना-ये रौद्रध्यान के चार भेद हैं। 32 संसार में फैले अन्धविश्वास का शिकार होकर कुछ लोग मुद्रा, मंडल, यन्त्र-तन्त्र, मारन, उच्चाटन आदि अनेक प्रकार के खोटे ध्यान के प्रपञ्च में पड़कर सन्मार्ग से इतने दूर चले जाते हैं कि उन्हें फिर सन्मार्ग पर लाना अत्यन्त कठिन हो जाता है। उन्हें ऐसे प्रपञ्च से बचाये रखने के लिए ही जैन धर्म में अप्रशस्त ध्यान का भेदों सहित वर्णन किया गया है और उन्हें इन सबसे बचने और कर्म-बन्धन को मिटानेवाले प्रशस्त ध्यान में लगने के लिए प्रेरित किया गया है। अप्रशस्त ध्यान से होनेवाली भारी हानि को बतलाते हुए ज्ञानार्णव में साधक को इनसे बचे रहने के लिए इन शब्दों में सावधान किया गया है: खोटे ध्यान के कारण सन्मार्ग से विचलित हुए चित्त को फिर सैकड़ों वर्षों में भी कोई सन्मार्ग में लाने को समर्थ नहीं हो सकता, इस कारण खोटा ध्यान कदापि नहीं करना चाहिये।
SR No.007130
Book TitleJain Dharm Sar Sandesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Upadhyay
PublisherRadhaswami Satsang Byas
Publication Year2010
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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