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OJa अन्तर्मुखी साधना
यह कहा जा चुका है कि सभी जीवों को सुख की चाह होती है। संसारी मनुष्य सांसारिक विषयों में सुख ढूँढ़ने की कोशिश करते हैं। इसलिए उनका मन इन्द्रियों के माध्यम से सदा सांसारिक विषयों की ओर दौड़ता रहता है। पर उन्हें किसी भी सांसारिक विषय-भोग से, जो क्षणिक और भ्रामक हैं, कभी तृप्ति नहीं होती। वे सदा दुःखी ही बने रहते हैं। आत्मा स्वयं ही सच्चे सुख का भण्डार है। इसलिए सच्चे सुख की प्राप्ति के लिए बाहर दौड़नेवाले मन को बाहरी विषयों से मोड़कर अन्तर में लाने और इसे आत्मस्वरूप में लीन करने की आवश्यकता है। सभी सुख-शान्ति तथा शक्ति और ऐश्वर्य की प्राप्ति अपने अन्तर में ही होती है। बाहरी विषय मिथ्या और नश्वर हैं। यही कारण है कि संसार में अनासक्त रहनेवाले सभी सच्चे सन्त-महात्मा जीवों को बहिर्मुखी कर्म-धर्म को त्यागने और अन्तर्मुखी साधना को अपनाने का उपदेश देते हैं। सन्तों के उपदेश की इसी विशेषता की ओर ध्यान दिलाते हुए कानजी स्वामी कहते हैं:
अहा, वीतरागमार्गी सन्तों की कथनी ही जगत् से जुदी है, वह अन्तर्मुख ले जानेवाली है।
पूर्ण सन्तों की बात ही जगत् से निराली होती है। वे अन्तर्मुखी साधना का उपदेश देते हैं। इस अन्तर्मुखी साधना के लिए साधक को किसी सच्चे सन्त-सद्गुरु के पास जाकर उनसे अन्तर्मुखी साधना की जानकारी प्राप्त करने
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