________________
जैन धर्म की प्राचीनता
मथुरा से प्राप्त अभिलेखों में तो ऋषभदेव के अतिरिक्त अन्य अर्हतों (तीर्थंकरों) और अन्तिम तीर्थंकर वर्द्धमान महावीर की भी अर्चना या पूजा का उल्लेख मिलता है। ऐसे तीन अभिलेखों में कहा गया है: (1) ऋषभदेव प्रसन्न हों। (2) अर्हतों की अर्चना। और (3) अर्हत वर्द्धमान की अर्चना।' __इससे भी पहले ऋग्वेद में ऋषभदेव का उल्लेख एक महापुरुष के रूप में मिलता है। ऋग्वेद वेदों का सबसे प्राचीन ग्रन्थ है जिसकी रचना अधिकांश विद्वानों के अनुसार लगभग ईसा पूर्व 3000 मानी जाती है। इससे पता चलता है कि आज से लगभग पाँच हजार वर्ष पहले ऋषभदेव को एक महापुरुष के रूप में स्वीकार किया गया था।
19वीं शताब्दी के उतरार्द्ध में सिन्धु घाटी में की गयी खुदाई से पता चलता है कि वैदिक सभ्यात से पहले वहाँ एक प्राचीन विकसित भारतीय सभ्यता मौजूद थी। इस खुदाई से प्राप्त अनेक प्रकार की वस्तुओं में कुछ ऐसी चीजें भी सामने आयी हैं जो इस सिन्धु घाटी की सभ्यता से जैन धर्म का सम्बन्ध सूचित करती हैं। उदाहरण के लिए, वहाँ से प्राप्त किये गये कुछ सील मुहरों पर नग्न पुरुष की आकृतियाँ बनी हुई हैं जो जैन महात्माओं की याद दिलाती हैं।
इन मुहरों पर जो शब्द अंकित हैं वे प्राकृत भाषा में हैं। इससे यह अनुमान लगाया जाता है कि सिन्धु घाटी के लोगों की भाषा प्राकृत रही होगी। यह बात ध्यान देने की है कि जैनों के प्राचीन ग्रन्थ प्राकृत में हैं जबकि हिन्दुओं के वेद आदि प्राचीन ग्रन्थ संस्कृत में है। भाषा वैज्ञानिकों के अनुसार प्राकृत जन-साधारण की अकृत्रिम बोली थी जबकि संस्कृत एक संस्कारित भाषा मानी जाती है। इससे निष्कर्ष निकलता है कि सिन्धु घाटी की सभ्यता वैदिक सभ्यता से पुरानी है, सिन्धु घाटी के निवासियों की बोलचाल की भाषा सम्भवतः प्राकृत थी और उसी भाषा में वहाँ जैन धर्म का प्रचार था। ऐसा मानने पर ऋग्वेद द्वारा जैनों के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव का उल्लेख किया जाना असंगत नहीं लगता।
सिन्धु घाटी की खुदाई से कुछ ऐसी भी मूर्तियाँ मिली हैं जो हिन्दू देवता शिव की प्रतिमा मानी जाती हैं। इससे पता चलता है कि सिन्धु घाटी के निवासियों के बीच जैन तीर्थंकर ऋषभदेव और हिन्दू देवता शिव की पूजा आर्यों की वैदिक सभ्यता के प्रारम्भ होने के पहले से प्रचलित थी।