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जैन धर्मः सार सन्देश जबतक जीव की संसार के प्रति आसक्ति रहती है तबतक उसका अन्तर में ध्यान लगना कठिन है और ध्यान के बिना मोक्ष की प्राप्ति नहीं हो सकती। बारह भावनाओं के चिन्तन से ध्यान में रुचि होती है और ध्यान द्वारा केवल ज्ञान (सर्वज्ञता) के प्रकट होने पर मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है।
भगवती आराधना, मूल में स्पष्ट कहा गया है:
धर्मध्यान में जो प्रवृत्ति करता है उसको ये द्वादशानुप्रेक्षा (बारह भावनाएँ) आधार रूप हैं। 39
इसीलिए जिन-वाणी में बारह भावनाओं का उल्लेख कर यह निश्चित उपदेश दिया गया है:
इनको (बारह भावनाओं को) समझकर नित्य प्रति मन, वचन और काय की शुद्धि सहित इनकी भावना कीजिए।१०
ध्यान को स्थिर बनानेवाली भावनाएँ। परमार्थ की साधना में लगे साधक के लिए अपने ध्यान को स्थिर बनाये रखना अत्यन्त आवश्यक है। मनुष्य एक संवेदनशील प्राणी है। वह जिस वातावरण में और जिन लोगों के बीच रहता है, उनसे वह किसी न किसी प्रकार से अवश्य प्रभावित होता है। संसार के सुखी, दुःखी, गुणी या पुण्यात्मा और पापी-सभी जीवों के प्रति मनुष्य के मन में स्वाभाविक रूप से विभिन्न प्रकार की प्रतिक्रियाएँ उत्पन्न होती हैं। पर ध्यान या समाधि की साधना करनेवाले साधक के चित्त में किसी भी परिस्थिति में किसी के भी प्रति तीव्र प्रतिक्रिया के उठने से विघ्न पैदा होता है। यदि विभिन्न परिस्थितियों में पडे जीवों के प्रति पूरी कठोरता अपना ली जाये और उनकी बिल्कुल उपेक्षा कर देने का विचार किया जाये तो ऐसा कर पाना अत्यन्त कठिन है और ऐसी कठोरता मनुष्य के लिए उचित भी नहीं है। ऐसी स्थिति में साधक विभिन्न परिस्थितियों में अपना सन्तलन कैसे बनाये रख सकता है? अपने चित्त को सन्तलित रखे बिना वह अपने ध्यान को स्थिर कैसे रख सकता है ? ध्यान की स्थिरता के लिए