________________
जैन धर्म: सार सन्देश
236 उससे भिन्न है। संसार में जो कुछ उत्पन्न होता है, वह अवश्य ही नष्ट होता है। पर मोहवश हम अनित्य और नश्वर पदार्थों को नित्य या स्थायी समझकर उनमें आसक्त हो जाते हैं और अपनी इस नासमझी के कारण जन्म-मरण के चक्र में पड़कर दुःख भोगते रहते हैं। इसीलिए जैन ग्रन्थों में बार-बार संसार और सांसारिक पदार्थों की अनित्यता की ओर हमारा ध्यान दिलाया गया है और नित्य पदार्थ (परमात्म-तत्त्व) को जानने के लिए ध्यान द्वारा परमार्थ बुद्धि प्राप्त करने का उपदेश दिया गया है, जैसा कि णाणसार (ज्ञानसार) में कहा गया है:
। बिजली जलबुदबुदवत प्यारे, जोबन जीवन तन धन सारे।
ऐसे सब अस्थिर पहचानो, परम ध्यान को करहु प्रमाणो॥/ बिजली अथवा जल बुदबुद के समान जीवन, यौवन, धन-धान्य सब अस्थिर (अनित्य) हैं। इस प्रकार परमार्थ बुद्धि से जानो।'
जिन-वाणी में भी संसार और इसके सभी पदार्थों को अनित्य और क्षणभंगुर बताते हुए कहा गया है:
जो कुछ उत्पन्न हुआ है उसका नियम से नाश होता है। परिणमन (बदलते रहनेवाला) स्वरूप होने से कुछ भी शाश्वत (नित्य) नहीं है। __ जन्म मरण से सहित है, यौवन जरा सहित है, लक्ष्मी (धन-दौलत) विनाश सहित है, इसप्रकार सब पदार्थ क्षणभंगुर हैं ऐसा जानिए।
जैसे नवीन मेघ तत्काल उदय होकर विनष्ट हो जाते हैं, उसी प्रकार इस संसार में परिवार, बन्धुवर्ग, पुत्र, स्त्री, भले मित्र, शरीर का लावण्य (सुन्दरता), गृह, गोधन (बहुत सी गौओं की सम्पत्ति) इत्यादि . समस्त पदार्थ अस्थिर हैं।
आचार्य कुंथुसागरजी महाराज ने भी संसार और उसके पदार्थों की अनित्यता इन शब्दों में व्यक्त की है।
यह संसार देखते-देखते नष्ट हो जाता है। माता, पिता, भाई, पुत्र आदि का संयोग बिजली की चमक के समान चंचल है, इनके वियोग का