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________________ गुरु सन्तों ने मोक्ष-मार्ग को सरल बना दिया है। बिना कोई शारीरिक योग - मुद्रा साधे या कष्ट उठाये आत्मलीनता प्राप्त कर जीव मोक्ष की प्राप्ति कर सकता है । इसे स्पष्ट करते हुए अनुभव प्रकाश में कहा गया है : इस प्रकार सत्संग या सन्तों की संगति के फलस्वरूप जीव अपने अन्तर में ध्यान लगाकर अपने आत्मस्वरूप का अनुभव प्राप्त करता है जिससे उसका अत्यन्त कठिन मोह दूर होता है और वह परमानन्द की प्राप्ति करता है । आत्मस्वरूप की प्राप्ति के मार्ग को सन्तों ने सरल कर दिया है। 193 चौरासी लाख योनियों में भटकते रहनेवाले जीव ने कभी भी कहीं स्थिरता के साथ निवास नहीं किया है । जबतक यह अपने परम ज्योतिर्मयस्वरूप को पहचानकर अपने कल्याणमय मोक्षधाम को प्राप्त नहीं कर लेता तबतक यह कार्य पूरा हो भी नहीं सकता। जपी, तपी, ब्रह्मचारी, यती (संन्यासी) आदि बनकर अनेकों प्रकार का वेश धारण करने से भी भला क्या हो सकता है ? अनादि भ्रम और दुःख तो आत्मरसरूपी अमृत के पीने पर ही मिटता है। 54 * अपने अनन्त दुःख को मिटाने और परमपद को प्राप्त करने के लिए अपने में बाहर से किसी नये गुण को लाने की आवश्कता नहीं होती । आत्मा स्वयं ही सर्वगुण सम्पन्न है। बस केवल किसी सन्त सद्गुरु की सहायता से इसके प्रकाश को ढकनेवाले बाहरी आवरण को हटा देने की आवश्कता होती है। इसे हटाने का उपाय भी सन्तों ने सुगम कर दिया है । इस सम्बन्ध में दीपचंदजी शाह काशलीवाल कहते हैं : * सो यह सत्संगतैं अनुभवी जीवनि के निमित्ततैं निजपरिणति स्वरूप की होय, विषय मोह मिटै परमानन्द भेंटै । स्वरूप पायवे का राह संतों नैं सोहिला (सरल) किया है। चौरासी लाख योनि सराय का सदा फिरन हारा कबहूं कहूं थिर रूप निवास न किया । जब तक परम ज्योति अपनें शिवघर कौं न पहुंचे तब तक एक कार्य भी न सरै। कहा भयो जो जपी तपी ब्रह्मचारी यति आदि बहुत भेष धरै तौ तातैं निज अमृत के पीवने तैं अनादि भ्रम खेद मिटै । (टिप्पणी 54 का मूल रूप)
SR No.007130
Book TitleJain Dharm Sar Sandesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Upadhyay
PublisherRadhaswami Satsang Byas
Publication Year2010
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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