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गुरु
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परम उदार दाता होते हैं । उनकी भक्ति द्वारा सब कुछ पाया जा सकता है। इसीलिए जैन धर्म में परमात्मारूप गुरु की भक्ति की अपार महिमा बतायी गयी है और उनका गुणगान किया गया है। गुरुरूपी परमात्मा की भक्ति का उपदेश देते हुए रत्नाकर शतक में कहा गया है :
वीतरागी प्रभु (रागरहित गुरुदेव) के गुणों के चिन्तन से जब अनादि कालीन कर्मबद्ध आत्मा को शुद्ध किया जा सकता है तो फिर कौन सा लौकिक कार्य असाध्य रह जायेगा ? प्रभु-भक्ति से बड़े से बड़ा कार्य सम्पन्न किया जा सकता है। अतः प्रत्येक समय चलते, फिरते, उठते-बैठते भगवान् की भक्ति करनी चाहिए | St
गुरु-भक्ति की महिमा और उससे प्राप्त होनेवाले लाभों का उल्लेख करते हुए रत्नाकर शतक में फिर कहा गया है
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जो व्यक्ति मन लगाकर प्रभु के चरणों की भक्ति करता है, उसे तीनों लोक की सभी सुख-सामग्रियाँ मिल जाती हैं, उसका यश समस्त लोक में व्याप्त हो जाता है तथा सभी लोग उससे स्नेह और उसका आदर करने लगते हैं। मोक्षलक्ष्मी (मोक्षरूपी लक्ष्मी) उसकी ओर प्रति क्षण देखती रहती है, स्वर्ग की सम्पत्तियाँ उसे अपने-आप मिल जाती हैं तथा समस्त गुण उसे प्राप्त हो जाते हैं । अभिप्राय यह है कि भगवान् की भक्ति में अपूर्व गुण वर्तमान हैं, जिससे उनकी भक्ति करने से सभी सुख-सामग्रियाँ अपने-आप प्राप्त हो जाती हैं । ... प्रभु-भक्ति का आधार लेकर बिना तपश्चरण आदि के भी व्यक्ति अपना उद्धार कर सकता है 152
सद्गुरु ही कृपा कर जीव को सत्संग में लाते, ज्ञान का उपदेश देते, अपने प्रति प्रेम बढ़ाते, अपना ध्यान कराते, अलख को लखाते, अन्तर में आनन्द - रस चखाते और अन्त में संसार से मुक्त करते हैं । अनुभव प्रकाश में उनकी महिमा और उनके उपकार का संकेत इन शब्दों में किया गया है :