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________________ जैन धर्म : सार सन्देश डुबकी लगाकर आचार्यों और विद्वानों के अनमोल विचारों को, जो अनेक प्राचीन और नवीन जैन ग्रन्थों में मोतियों के समान बिखरे पड़े थे, एकत्र कर तथा उन्हें एकसूत्र में पिरोकर पाठकों के सामने प्रस्तुत करने का यहाँ प्रयत्न किया गया है। इस प्रकार इस पुस्तक की सामग्री मुख्यतः जैन आचार्यों और विद्वानों की है। इस पुस्तक के लेखक ने केवल इस सामग्री को एकत्र कर इसे एक विशेष रूप से सजाया है तथा इसे अपने धागे से पिरोकर जैन धर्म के मोतियों की यह नवीन माला तैयार की है। इस पुस्तक में प्रस्तुत किये गये विचारों की पुष्टि अनेक जैन ग्रन्थों के उद्धरणों द्वारा की गयी है जिसमें इनकी प्रामाणिकता में कोई सन्देह न रहे। इस पुस्तक में विषयों का चुनाव, जैसा कि इसकी विषय सूची से स्पष्ट है, आध्यात्मिक जिज्ञासुओं और साधकों के व्यावहारिक दृष्टिकोण को ध्यान में रखकर किया गया है। इसलिए जैन धर्म के कुछ सैद्धान्तिक विषयों का विवेचन यहाँ ग्रन्थ-विस्तार के भय से नहीं किया जा सका है। यद्यपि जैन ग्रन्थों में 'आत्मा' शब्द का प्रयोग प्रायः पुलिंग में किया जाता है, फिर भी हिन्दी भाषा में 'आत्मा' शब्द का प्रयोग प्रायः स्त्रीलिंग में किये जाने के कारण इस पुस्तक में इस शब्द का प्रयोग स्त्रीलिंग में ही किया गया है। __ आशा है कि यह पुस्तक परमार्थ के जिज्ञासुओं और साधकों के लिए उपयोगी सिद्ध होगी और साधारण पाठक भी इससे यथेष्ट लाभ उठा सकेंगे। डॉ. काशी नाथ उपाध्याय सेवानिवृत्त प्रोफ़ेसर और अध्यक्ष दर्शन विभाग, हवाई विश्वविद्यालय अमेरिका
SR No.007130
Book TitleJain Dharm Sar Sandesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Upadhyay
PublisherRadhaswami Satsang Byas
Publication Year2010
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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