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गुरु
गुरु की आवश्यकता अनेकों योनियों में अत्यन्त लम्बे समय तक भटकते रहने के बाद यदि कभी सौभाग्य से जीव परम दुर्लभ मनुष्य योनि प्राप्त करता है तब भी सुसंगति के अभाव में वह अपनी विवेक-शक्ति का सदुपयोग नहीं कर पाता। वह फिर संसार की असलियत को नहीं समझने की भूल करता है और सांसारिक विषयों की चकाचौंध में भूला हुआ उनसे अनासक्त होने का प्रयास नहीं करता। इस भारी भूल के कारण वह दुःखों से सदा के लिए छुटकारा पाने का अनमोल अवसर गँवा देता है और फिर आवागमन के दुःखदायी चक्र में ही फँसा रह जाता है। अज्ञान के अन्धकार में भटकते रहनेवाला जीव तब तक आवागमन के चक्र से छुटकारा नहीं पा सकता जब तक उसे कोई सच्चा मार्गदर्शक न मिले। इसलिए यदि सौभाग्य से दुर्लभ मनुष्य-जीवन प्राप्त हो जाये तो मनुष्य को अपने विवेक का सदुपयोग कर जल्दी से जल्दी किसी सच्चे गुरु की शरण में जाना चाहिए और उनकी कृपा और सहायता से संसार से अनासक्त होने और मोक्ष की प्राप्ति करने का भरपूर प्रयत्न करना चाहिए। दुर्लभ मनुष्य-जीवन पाकर किसी सच्चे गुरु की शरण में जाना इस जीवन का सबसे बड़ा लाभ है और सच्चे गुरु की खोज न करना इस जीवन की सबसे बड़ी हानि है।
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