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________________ मानव-जीवन 159 - जो मनुष्य-जीवन के सुनहले अवसर का लाभ नहीं उठाता उसे फिर चौरासी लाख योनियों के चक्कर में पड़कर घोर दुःख उठाना पड़ता है। कुन्थुसागरजी महाराज ने ऐसे मनुष्य की उपमा तेली के बैल से दी है जो कोल्हू के चारों ओर चक्कर लगाता रहता है। वे कहते हैं: जिस प्रकार तेली का बैल आँखों में पट्टी बाँधकर घानी के चारों ओर घूमा करता है उसी प्रकार यह संसारी जीव भी मिथ्यात्व और मोह की पट्टी बाँधकर इस संसार में घूमा करता है। तेली का बैल कोल्ह व घानी के चारों ओर घूमता है और यह जीव चारों गतियों में घूमता है।5। कुछ अज्ञानी मनुष्य सच्चे वैराग्य (अनासक्ति) और आत्मज्ञान के न होने पर भी साधु का वेश बनाकर लोगों को ठगते फिरते हैं। इस प्रकार वे अपने दुर्लभ मनुष्य-जीवन को नाहक बरबाद कर देते हैं। इसे स्पष्ट करते हुए कुंथुसागरजी महाराज कहते हैं: जो अज्ञानी व आत्मज्ञान से रहित पुरुष वैराग्य और आत्मज्ञान को धारण किये बिना जिनलिंग (जैन साधु का वेश) धारण करता है उसका यह मनुष्य-जन्म भी व्यर्थ ही जाता है। शुभचन्द्राचार्य ने ऐसे मनुष्यों के पाखण्डी आचरण को अत्यन्त ही निन्दनीय कहा है। वे कहते हैं: कई निर्दय और निर्लज्ज साधुपन में भी अतिशय निन्दा करने योग्य कार्य करते हैं। वे सच्चे कल्याण के मार्ग का विरोध कर नरक में प्रवेश करते हैं। ...जो मुनि (साधु) होकर उस मुनि-दीक्षा को जीवन का उपाय बनाते हैं और उसके द्वारा धनोपार्जन करते हैं, वे अतिशय निर्दय तथा निर्लज्ज हैं। मनुष्य-जीवन का लक्ष्य अपनी आत्मा के स्वरूप का अनुभव प्राप्त कर परमात्मा बनना है। पर जबतक बुरे कर्मों की ओर प्रेरित करनेवाले बुरे भाव जीव के अन्दर घर किये रहते हैं और वह आत्मा से भिन्न सांसारिक विषयों
SR No.007130
Book TitleJain Dharm Sar Sandesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Upadhyay
PublisherRadhaswami Satsang Byas
Publication Year2010
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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