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________________ मानव-जीवन 151 आवश्यक है। एकान्त-साधना के बिना मन को वश में करना अत्यन्त कठिन है और मन को वश में किये बिना आत्मज्ञान या मोक्ष को प्राप्त करना तो असम्भव ही है। इसीलिए वर्णीजी कहते हैं: संसार अशान्ति का पुञ्ज है, अतः जो भव्य (मोक्षार्थी जीव) शान्ति के उपासक हैं उन्हें अशान्ति उत्पादक मोहादि विकारों की यथार्थता का अभ्यास कर एकान्तवास करना चाहिए। ___जो मनुष्य अपने मन पर विजयी नहीं, संसार में उसकी अधोगति निश्चित है। यदि मोक्ष की अभिलाषा है तो एकाकी बनने का प्रयत्न करो। अनेक वस्तुओं से प्रेम करना आत्मा के निजत्व (निजी स्वरूप) का घातक है।39 संयमपूर्वक एकान्त-साधना करने से मन धीरे-धीरे एकाग्र हो जाता है और उसे आन्तरिक सुख और शान्ति का रस मिलने लगता है। इससे जीव के राग, द्वेष और मोह नष्ट हो जाते हैं और वह समभाव धारण कर परमात्मा का दर्शन प्राप्त कर लेता है। ज्ञानार्णव में इसका उल्लेख इसप्रकार किया गया है: हे आत्मन् ! मोहरूप अग्नि को बुझाने के लिए और संयमरूपी घर का आश्रय करने के लिए तथा रागरूप वृक्षों के समूह को कटाने के लिए समभाव का (समता का) अवलंबन कर, ऐसा उपदेश है। संयमी मुनि समभावरूपी सूर्य की किरणों से रागादितिमिर समूह (राग आदि अन्धकार के समूह) के नष्ट होने पर परमात्मा का स्वरूप अपने में ही अवलोकन करता है। 40 समभाव की प्राप्ति हो जाने पर मनुष्य संसार में 'जल में कमल' के समान निर्लिप्त या अनासक्त भाव से रहता है। ऐसा वीतरागी या उदासीन भाव से रहनेवाला साधक ही परमात्मपद का अधिकारी होता है, जैसा कि गणेशप्रसाद वर्णी कहते हैं:
SR No.007130
Book TitleJain Dharm Sar Sandesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Upadhyay
PublisherRadhaswami Satsang Byas
Publication Year2010
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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