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________________ मानव-जीवन और विषय-भोगों के जुटाने में व्यर्थ न गमावें किन्तु एक-एक क्षण को स्वर्ण कोटियों से (सोने के ढेरों से) भी अधिक मूल्यवान् समझकर आत्मस्वरूप की प्राप्ति में व्यय करें | 29 147 अपने अनेकानेक जीवन में हम सभी सांसारिक सुखों और दुःखों को बार-बार भोग चुके हैं, पर इन सब से कभी हम सुखी या तृप्त न हो सके । हम सदा बाहरी विषयों को जानने और उन्हें प्राप्त करने में ही लगे रहे। कभी भी हमने अपने आत्मस्वरूप को जानने का प्रयत्न नहीं किया जिसमें लीन होकर हम सदा के लिए मुक्त और सुखी हो सकते हैं । इस तथ्य को समझाते हुए आचार्य कुंथुसागरजी महाराज कहते हैं: इस संसार में परिभ्रमण करते हुए इस जीव को अनन्तानन्त काल व्यतीत हो गया। इस समय में इसने नरक में भी अनन्त बार जन्म लिया, स्वर्ग में भी अनन्त बार जन्म लिया तथा मनुष्य और तिर्यंच योनि में अनन्त बार जन्म लिया। . ऐसी अवस्था में कोई भी पदार्थ अलब्ध व कभी प्राप्त न होनेवाला कभी नहीं कहा जा सकता। • आत्मा और पुद्गलादिक पर पदार्थों के (आत्मा से भिन्न सांसारिक पदार्थों के) यथार्थ स्वरूप को जाननेवाला सम्यग्दृष्टिपुरुष उन समस्त पदार्थों को व भोगोपभोगों के साधनों को अनन्त बार प्राप्त होनेवाला मानता है तथा इसीकारण से उन सबका त्याग कर देता है और कभी प्राप्त न होनेवाले अपने आत्मा के शुद्ध स्वरूप में लीन हो जाता है । अतएव इन सब बातों को समझकर भव्य (मोक्षार्थी) जीवों को पर पदार्थों का त्याग कर देना चाहिए और आत्मतत्त्व में लीन हो जाना चाहिए । यही मोक्ष का उपाय है। 30 मोक्ष की प्राप्ति के लिए ज्ञान और वैराग्य ( अनासक्ति) को बढ़ाना आवश्यक है। पर बाहरी विषयों से चित्तवृति को हटाकर इसे आत्मा में लीन किये बिना सच्चे ज्ञान और वैराग्य की प्राप्ति नहीं हो सकती। इसलिए आत्म-लीन होकर आत्मानुभव प्राप्त करना और इस प्रकार सच्चे ज्ञान और
SR No.007130
Book TitleJain Dharm Sar Sandesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Upadhyay
PublisherRadhaswami Satsang Byas
Publication Year2010
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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