________________
144
जैन धर्म: सार सन्देश मृत्यु किसी को भी नहीं छोड़ती। राजा-रंक-सबको एक दिन संसार से जाना ही पड़ता है। इसलिए हमें सदा अपनी मृत्यु का ख़याल रखते हुए शीघ्र से शीघ्र अपना पारमार्थिक कार्य पूरा कर लेना चाहिए। यह बताते हुए कि मृत्यु से कोई बच नहीं सकता, भूधरदास कहते हैं:
राजा राणा छत्रपति, हाथिन के असवार।
मरना सबको एक दिन, अपनी-अपनी बार ॥1 यह जानते हुए कि इस क्षणभंगुर शरीर का कोई भरोसा नहीं, हमें अपने पारमार्थिक कार्य को पूरा करने में तनिक भी ढील नहीं देनी चाहिए। हमारे पास समय बहुत ही कम है। इन्हीं बातों की याद दिलाते हुए चम्पक सागरजी महाराज हमें अपनी साधना में पूरी तरह तत्पर रहने के लिए चिताते हैं। वे कहते हैं:
/क्षण भंगुर इस देह का, करना क्या विश्वास। कुटिल काल करेगा ही, काया का ही विनाश ॥ समय जरासा है नहीं, आयुष्य का विश्वास।
राजा-रंक जीवें सभी, क्षण में पावें नाश॥ इसी प्रकार गणेशप्रसाद वर्णी भी हमें चिताते हुए कहते हैं: /देख दशा संसार की क्यों नहिं चेतत भाय।
आखिर चलना होयगा क्या पण्डित क्या राय॥3/ इसी विचार को प्रकट करते हुए हुकमचन्द भारिल्ल भी जीवन और जगत् की क्षणभंगुरता इन शब्दों में व्यक्त करते हैं: / झूठे जग के सपने सारे, झूठी मन की सब आशाएँ। तन-जीवन-यौवन अस्थिर है, क्षणभंगुर पल में मुरझाएँ॥१/
मानव-जीवन की सार्थकता अनन्त काल तक अनेक योनियों में भटकते रहने के बाद बड़े भाग्य से यह मनुष्य-जीवन प्राप्त होता है। केवल इसी जन्म में मनुष्य अपने विवेक का