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मानव-जीवन
141 संसार की भाग-दौड़ और चकाचौंध में हम इस तरह भूले रहते हैं कि हमें न अपने और न अपने सगे-सम्बन्धियों के जीवन के क्षणभंगुर होने का ध्यान रहता है। आचार्य पद्मनन्दि इस बात पर आश्चर्य करते हैं और हमें अपने जीवन की क्षणभंगुरता की याद दिलाते हुए कहते हैं:
स्त्री पुत्रादिक के रूप में जो भी कुटुम्ब-परिवार है वह सब बिजली के समान क्षणभंगुर है-उसमें स्वभाव से चलाचली लगी रहती है। ऐसी स्थिति होते हुए यदि उसका कोई प्राणी उठकर चल देता है, तो उस पर सयाने- बुद्धिमान मनुष्य भी किस बात का खेद करते हैं, यह कुछ समझ में नहीं आता!13
शुभचन्द्राचार्य भी मनुष्य के क्षणभंगुर जीवन की उपमा क्षणभर के लिए चमकनेवाली बिजली से करते हैं और बताते हैं कि जीवन के इस अत्यन्त थोड़े समय में ही हमें अपना कल्याण कर लेना चाहिए। इस संसार में अनाड़ी मनुष्य अपनी इन्द्रियों के वश में होकर सांसारिक विषय-सुख के लिए दौड़ते फिरते हैं। वे नहीं समझते कि ये विषय-सुख अनित्य, रसहीन और दुःख के कारण हैं। इसके विपरीत विचारशील मनुष्य इन सांसारिक विषयों के मोह में न पड़कर अपने जीवन के थोड़े से समय को आत्म-कल्याण में लगाते हैं और अपने जीवन को सफल कर लेते हैं। इसे समझाते हुए शुभचन्द्राचार्य कहते हैं:
यह संसार निश्चय ही बड़ा गहन बन है, यह दुःखरूपी अग्नि की. ज्वाला से व्याप्त है। इस संसार में इन्द्रियाधीन सुख है सो अन्त में विरस (रसविहीन) है, दुःख का कारण है, तथा दुःख से मिला हुआ है। और जो काम और अर्थ हैं सो अनित्य हैं, सदैव नहीं रहते। तथा जीवन बिजली के समान चंचल है। इसप्रकार समीचीनता से (ठीक से) विचार करनेवाले जो अपनी आत्मा के हित में लगे सत्कर्म करनेवाले सत्पुरुष हैं, वे कैसे मोह को प्राप्त होवें?14
यह जानते-सुनते हुए भी कि यह मनुष्य-जीवन बिजली के समान चंचल और क्षणभंगुर है, जो मनुष्य अपनी आत्मा के कल्याण की परवाह न कर