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________________ 140 जैन धर्म : सार सन्देश साँस लेने हैं। हमें इस बात का भी ध्यान नहीं रहता कि प्रत्येक साँस के साथ हमारे जीवन की सीमित आयु घटती जा रही है और हम किसी भी समय मृत्यु के मुख में जा सकते हैं। इसी बात को समझाते हुए आचार्य पद्मनन्दि कहते हैं: क्षणक्षण में जो आयु का क्षय होता है वह यम-मुख है। उस यम-मुख में-काल के गाल में सभी प्राणी गये हुए हैं-सभी की आयु प्रतिक्षण छीजती (घटती जाती) है। समय अनन्त है और अनन्त समय की दृष्टि से यदि मनुष्य-जीवन को देखें तो लगेगा कि यह पानी के बुलबुले के समान है, जो एक क्षण में उत्पन्न होता है और दूसरे ही क्षण विलीन हो जाता है। आचार्य पद्मनन्दि ने स्पष्ट कहा है: अम्भोबुबुद-सन्निभा तनुरियम्। यह शरीर जल के बुलबुले के समान क्षणभंगुर है।" पानी के बुलबुले से ही इस शरीर की उपमा देते हुए चम्पक सागरजी महाराज कहते हैं: पानी का बुलबुला जितनी देर ठहरा रहे उतनी देर का आश्चर्य करना चाहिए, उसके नष्ट होने का कुछ आश्चर्य नहीं है। यह भौतिक शरीर जल के बुलबुले के समान है। जब भी यह नष्ट हो जाये उसमें क्या आश्चर्य की बात है? __लोग कहते हैं कि 'अभी हमारी उम्र नहीं, कुछ खा पी लें, मौज शौक कर लें, संसार के विषय भोग लें, कुछ रंगरलियाँ कर लें, बड़े हो जाने पर त्याग कर देंगे, धर्म कर लेंगे, दीक्षा ग्रहण कर लेंगे।' किन्तु उन्हें सब कुछ देखते हुए भी यह विश्वास कैसे हो गया कि धर्म करने के लिए वे जिस वृद्ध अवस्था को सोच रहे हैं, उस वृद्ध अवस्था तक वे पहुँच पोवेंगे भी? हम देखते हैं कि पिता बैठा रहता है, पुत्र मृत्यु का शिकार हो जाता है। 12
SR No.007130
Book TitleJain Dharm Sar Sandesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Upadhyay
PublisherRadhaswami Satsang Byas
Publication Year2010
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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