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मानव-जीवन
मानव-जीवन की दुर्लभता असंख्य जन्मों तक आवागमन के चक्र में पड़कर दुःख भोगते रहने के बाद बड़े भाग्य से जीव को मनुष्य का दुर्लभ जीवन प्राप्त होता है जिसका सदुपयोग कर वह सदा के लिए आवागमन के चक्र से छुटकारा पा सकता है। यह मनुष्य-जीवन ही कर्मों को पूरी तरह नष्ट कर आत्मा के असली स्वरूप को पहचानने और सभी दुःखों को दूर कर अनन्त सुख या मोक्ष को प्राप्त करने का एकमात्र अवसर है। इसीलिए इस जीवन को सर्वश्रेष्ठ या सर्वोत्तम जीवन कहा जाता है। पर इस मानव-जीवन को पाना अत्यन्त कठिन है। इसे परम दुर्लभ माना गया है। इसे स्पष्ट करते हुए जिन-वाणी में कहा गया है:
यह जीव अनादि काल से अनन्त काल तक संसार की निगोद (अत्यन्त सूक्ष्म) योनियों में वास करता है जहाँ एक शरीर में अनन्त जीवों का वास पाया जाता है। वहाँ से निकलकर वह पृथ्वीकायादिक पर्याय (जन्म) धारण करता है।
जिस प्रकार समुद्र में गिरे हुए रत्न का फिर पाना अत्यन्त दुर्लभ है उसी प्रकार मनुष्य पर्याय प्राप्त करना महान् दुर्लभ है। उस मनुष्य गति में ही शुभ ध्यान होता है और उसी मनुष्य गति से ही निर्वाण अर्थात् मोक्ष की प्राप्ति होती है।
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