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अहिंसा
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बचने, अपने जीवन में पवित्रता लाने और परमार्थ की राह पर चलने के लिए हिंसा के साथ ही मांस-मदिरा का भी त्याग करना अत्यन्त आवश्यक है ।
शुद्ध और सात्त्विक खान-पान तथा सदाचारमय जीवन - ये पारमार्थिक साधना के आधार हैं। शुद्ध आहार और पवित्र आचरण को अपनाये बिना पारमार्थिक साधना में सफल होने और अविनाशी सुख-शान्ति प्राप्त करने की आशा नहीं की जा सकती । वास्तव में शुद्ध आहार और सदाचार के बिना कोई पारमार्थिक साधना का अधिकारी या पात्र ही नहीं बनता। इसी भाव को प्रकट करते हुए हुकमचन्द भारिल्ल कहते हैं:
शुद्ध सात्त्विक सदाचारी जीवन के बिना सुख - शान्ति प्राप्त होना तो दूर, सुख-शान्ति प्राप्त करने का उपाय समझने की पात्रता भी नहीं पकती। 52
इसीलिए जैन धर्म में अहिंसा की सर्वाधिक महिमा बतलाते हुए मांस-मदिरा के सेवन का पूर्ण निषेध किया गया है।