SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 132
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अहिंसा 131 ___ मांस खाने को उचित ठहराने के लिए कुछ लोग यह दलील देते हैं कि मांसाहारी मनुष्य एक ही बड़े पशु को मारकर अपना भोजन पूरा कर सकता है जबकि शाकाहारी मनुष्य अपने भोजन के लिए अनेक अन्न के दानों और साग-सब्जियों का घात करता है। इसलिए मांसाहारी से अधिक शाकाहारी को हिंसा का दोष लगता है। इस प्रकार का तर्क इस ग़लत धारणा पर आधारित है कि एकेन्द्रिय (जैसे-पेड़-पौधों) से लेकर पंचेन्द्रिय जीव (जैसे-पशु, मनुष्य) तक-सभी प्रकार के जीवों के घात का दोष बराबर ही होता है। पर ऐसा होता नहीं है। यदि ऐसा होता तो एक घास या पौधे (एकेन्द्रिय जीव) को उखाड़ने और एक मनुष्य (पंचेन्द्रिय जीव) की हत्या करने का दोष बराबर ही माना जाता। पेड़-पौधों में केवल स्पर्श-ज्ञान की ही कुछ शक्ति होती है जबकि दो इन्द्रिय से लेकर पाँच इन्द्रियों तक के जीवों की ज्ञान-शक्तियों की संख्या और क्षमता क्रमश: बढ़ती जाती है। यही कारण है कि एक मच्छर को मारने की अपेक्षा एक मनुष्य को मारने का पाप असंख्यगुणा अधिक माना जाता है। इस सचाई को समझाते हुए पुरुषार्थसिद्धयुपाय में मांसाहारियों की उक्त दलील का खण्डन इन शब्दों में किया गया है: ऐसा विचार करके कि बहुत जीवों के घात से उत्पन्न हुए भोजन से एक जीव के घात से उत्पन्न हुआ भोजन अच्छा है' कभी भी जङ्गम (चलने-फिरनेवाले) जीव की हिंसा नहीं करनी चाहिए। भावार्थ-अन्नादिक के आहार में अनेक जीव मरते हैं, अतएव उनके बदले एक बड़े भारी जीव को मारकर खा लेना अच्छा है' ऐसा कुतर्क करना मूर्खतापूर्ण है, क्योंकि हिंसा प्राणघात करने से होती है और एकेन्द्रिय जीवों की अपेक्षा पंचेन्द्रिय जीवों के द्रव्य प्राण व भाव प्राण अधिक होते हैं, ऐसा सिद्धान्तकारों का मत है। इसलिए अनेक छोटे-छोटे जीवों से बड़े प्राणी के घात में अधिक हिंसा है। जब एकेन्द्रिय जीव के मारने से द्वीन्द्रिय जीव के मारने में ही असंख्यगुणा पाप है, तो पंचेन्द्रिय की हिंसा का तो कहना ही क्या है ?45
SR No.007130
Book TitleJain Dharm Sar Sandesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Upadhyay
PublisherRadhaswami Satsang Byas
Publication Year2010
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy