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अहिंसा
129 पहले के ज़माने में युद्ध के मैदान में सिपाही लड़ते थे और सिपाही ही मरते थे; पर आज युद्ध सिपाहियों तक ही सीमित नहीं रह गया है, युद्ध मैदानों तक ही सीमित नहीं रह गया है। आज उसकी लपेट में सारी दुनिया आ गयी है। आज की लड़ाइयों में मात्र सिपाही ही नहीं मरते, किसान भी मरते हैं, मजदूर भी मरते हैं, व्यापारी भी मरते हैं, खेत-खलियान भी बर्बाद होते हैं, कल-कारखाने भी नष्ट होते हैं, बाजार और दुकानें भी तबाह हो जाती हैं। अधिक क्या कहें, आज के इस युद्ध में अहिंसा की बात कहनेवाले पण्डित और साधुजन भी नहीं बचेंगे, मन्दिर-मस्जिद भी साफ हो जावेंगे। आज के युद्ध सर्वविनाशक हो गये हैं। आज हिंसा जितनी भयानक हो गयी है, भगवान् महावीर की अहिंसा की आवश्यकता भी आज उतनी ही अधिक हो गयी है।
वास्तव में जैन धर्म के अनुसार अहिंसा का पालन व्यक्ति और समाज-सबके लिए सर्वदा और सर्वथा (सभी प्रकार से) कल्याणकारी और सुखदायी माना जाता है, जबकि हिंसा सबके लिए सदा और सभी प्रकार से पापमयी, दुःखदायी और दुर्गति की ओर ले जानेवाली मानी जाती है।
मांस-मदिरा का निषेध धर्म को कलंकित न कर इसे पवित्र बनाये रखने के लिए अहिंसा का पालन करना आवश्यक है और अहिंसा का पालन सही ढंग से करने के लिए अपने खान-पान की शुद्धि पर ध्यान रखना आवश्यक है। केवल जीभ के स्वाद के लिए या दूसरों की देखा-देखी निरपराध (बेकसूर) जीवों को मारकर उनका मांस खाना और थोड़ी-सी नशे की मस्ती के लिए शराब आदि नशीले पदार्थों का सेवनकर अपनी आत्मा को दूषित करना अपने को पतन की ओर ले जाना है। मांस-मदिरा के सेवन से आत्मा विकारयुक्त हो जाती है और इसके लिए मोक्ष-मार्ग में आगे बढ़ना कठिन हो जाता है। इसलिए जैन धर्म में मांस-मदिरा का सर्वथा निषेध किया गया है। __मांस का निषेध करते हुए जैन धर्म में समझाया गया है कि मांस की उत्पत्ति जीवहिंसा किये बिना नहीं होती। यदि कोई कहे कि किसी दूसरे द्वारा मारे गये