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अहिंसा
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जिस पुरुष का चित्त जीवों के लिए शस्त्र के समान निर्दय है उसका तप करना और शास्त्र का पढ़ना आदि कार्य केवल कष्ट के लिए ही होता है, कुछ भलाई के लिए नहीं होता।
इसके विपरीत जो महापुरुष दृढ़तापूर्वक अहिंसा का पालन करते हैं उनके अन्तर की शान्ति और पवित्रता का प्रभाव उनके सम्पूर्ण वातावरण को शान्तिमय
और पवित्र बना देता है। सबके प्रति दया, करुणा, मैत्री और जीव-रक्षा का भाव रखनेवाले साधुजनों के चारों ओर एक सूक्ष्म (अदृष्ट) प्रभा-मण्डल बन जाता है जो उनके आस-पास दया और करुणा का भाव बिखेरकर उनके लिए एक सुरक्षा कवच का काम करता है। ऐसे साधुजनों के शान्ति पूर्ण आत्मतेज और अनुपम अमोध (अचूक) शक्ति के सामने हिंसक, विरोधी और उपद्रवी दुष्टजन भी नतमस्तक हो जाते हैं। यहाँ तक कि हिंसक पशु भी उनके सामने अपने जन्मजात वैरभाव और उग्रता को भुलाकर शान्त और नम्रभाव धारण कर लेते हैं। अहिंसा की अपार शक्ति, अद्भुत प्रभाव और अनुपम महिमा का उल्लेख नाथूराम डोंगरीय जैन इन शब्दों में करते हैं:
अहिंसा की शक्ति और महिमा दोनों ही अनुपम व अचिन्त्य हैं। जब साधु पुरुष मन वचन कर्म से अहिंसक और वीतराग बनकर आत्मशुद्धि करने का प्रयत्न करते हैं, उस समय उनमें जो आत्मतेज प्रकट होता है उसके प्रभाव से बड़े-बड़े अभिमानियों का मस्तक उनके चरणों में अपने-आप झुक जाता है और जङ्गल के मृग और सिंहादि पशु-पक्षी भी अपने आपसी जन्मजात वैर विरोध का त्याग कर शान्ति के साथ उनके चरणों में जा बैठते हैं। ...जिस महापुरुष की अन्तरात्मा में शुद्ध अहिंसा का अथाह समुद्र भरा हुआ है उसका प्रभाव यदि विद्वेषियों और विद्रोहियों की हिंसात्मक भावनाओं को कुंठित और हतप्रभ बनाकर उन्हें भी अहिंसक और नम्र बनादे तो इसमें आश्चर्य की क्या बात है ?31
अहिंसा के अद्भुत प्रभाव का वर्णन करते हुए योगसूत्र में भी कहा गया है: