________________
118
जैन धर्म : सार सन्देश ___ यहाँ यह याद रखना चाहिए कि अहिंसा वीरों का धर्म है, वीरों का आभूषण है न कि कायरता की निशानी। यह दुर्बलता का प्रतीक नहीं, बल्कि सबलता का सूचक है। मनोबल की हीनता, आततायियों के अन्याय को सहन करना, प्रतिकार या प्रतिरोध न करना अहिंसा नहीं। अहिंसा माँगती है त्याग, आत्म-संयम और आत्म-विश्वास तथा एक उदार मानवीय संकल्प। ईर्ष्या-द्वेष, स्वार्थ, लोभ-लालच के ऊपर उठकर सौम्य व्यवहार, मधुर वचन, पर-पीड़ा निवारण अहिंसा के सोपान हैं । अहिंसा सक्रिय प्रेम का व्यावहारिक रूप है।
अहिंसा परम शूरवीरों का अस्त्र है। इसमें अनावश्यक हिंसा के प्रयोग के लिए कोई भी स्थान नहीं है। यह निष्क्रिय स्थिति नहीं, बल्कि प्रबल सक्रियता की स्थिति है। अहिंसा सिखाती है बुराई के बदले भलाई, वैरी को बैर से नहीं, धैर्य एवं सहानुभूति से ग़लती से मुक्त कराने की भावना। जो एक को सत्य प्रतीत होता है वही दूसरों को ग़लत दिखाई दे सकता है। ऐसी स्थिति में विरोधी को कष्ट अथवा पीड़ा देकर नहीं, बल्कि उसे क्षमा कर तथा स्वयं कष्ट उठाकर उसे सत्य की प्रतीति करायी जा सकती है और उसे अपने वश में किया जा सकता है। अतः जहाँ अहिंसा से काम लिया जा सकता है, वहाँ असहिष्णु बनकर लड़ना-झगड़ना वीरता नहीं, मूर्खता है।
अहिंसा सिखाती है निर्भयता और निर्भयता वीरता का लक्षण है। क्षमा वही व्यक्ति कर सकता है जिसमें शौर्य का गुण हो, कष्ट सहने का सामर्थ्य हो। अहिंसक आचरण व मनोवृत्ति विद्रोहियों की हिंसात्मक प्रवृत्ति को भी बदल देती है। इस प्रकार अहिंसा हृदय-परिवर्तन का एक सक्षम शस्त्र है।
इस संदर्भ में नाथूराम डोंगरीय जैन कहते हैं:
वे पुरुष वीर कहलाते हैं जो किसी आततायी के द्वारा सताये जाने पर आत्मरक्षा करने में पूर्ण समर्थ होते हैं और उसे वश कर उस पर विजय प्राप्त कर लेते हैं; किन्तु जो प्रतीकार करने में पूर्ण समर्थ होते हुए भी दुश्मन की दुष्टता और मूर्खता का बदला लेने की अपेक्षा उसे हृदय से क्षमा कर देते हैं वे वास्तव में महावीर और सच्चे अहिंसक हैं। अपराधी को हृदय से क्षमा कर देना और उसका तनिक भी ख्याल न लाना कितना