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________________ जीव, बन्धन और मोक्ष 103 अनुपम आनन्द में स्थित रहती है। तत्त्वार्थाधिगम सूत्र में आत्मा के ऊपर के लोक में जाने के चार कारणों को चार उपमाओं द्वारा इसप्रकार समझाया गया है: पूर्व प्रयोगादसङ्गत्वाद् बन्धच्छेदात्तथागति परिणामाच्च । 12 अर्थ - (1) पूर्व प्रयोग से (2) कर्मों से संग का अभाव होने से (3) बन्धन के टूटने से और (4) वैसा ही गमन करना आत्मा का स्वभाव होने से मुक्तात्मा ऊपर के लोक में चली जाती है। इन चारों कारणों को जैनधर्मामृत में इस प्रकार स्पष्ट किया गया है: (1) पूर्व के अभ्यास से जिस प्रकार कुम्भकार का चक्र लकड़ी के हटा लेने पर भी घूमता ही रहता है उसी प्रकार यह आत्मा भी ' कब मुक्त बनूँ, कब सिद्धालय में पहुँचूँ' इत्यादि प्रकार के संस्कार के कारण यह मुक्त जीव शरीर से छूटते ही ऊपर को चला जाता है । (2) मिट्टी से लिप्त घड़ा जैसे पहले पानी में डूबा रहता है और मिट्टी के दूर होते ही ऊपर आ जाता है, इसी प्रकार कर्मरूप मृत्तिका से मुक्त होते ही यह जीव ऊपर चला जाता है । (3) एरण्ड का बीज अपने कोशरूपी बन्धन के छेद होते ही (फटते ही) जैसे ऊपर को जाता है उसी प्रकार कर्म बन्धनों के नष्ट होने से यह ऊपर को जाता है । अथवा (4) जिस प्रकार अग्नि की शिखा का ऊपर को उठना ही स्वभाव है, उसी प्रकार जीव का भी ऊर्ध्वगमन स्वभाव है, अतः मुक्त होते ही वह ऊपर को जाता है 43 यह मोक्ष की अवस्था रोग-शोक, जन्म- जरा - मरण, चिन्ता - भय आदि से पूर्णतः मुक्त है । इस अवस्था को प्राप्त आत्मा कर्ममल से रहित हो सदा के लिए परमात्मा बन जाती है। इसके अलौकिक सुख-शान्ति की महिमा अवर्णनीय है। इसी सच्चे परमानन्द और परम शान्ति को प्राप्त करना मानवजीवन का लक्ष्य है।
SR No.007130
Book TitleJain Dharm Sar Sandesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Upadhyay
PublisherRadhaswami Satsang Byas
Publication Year2010
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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