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________________ 98 मोक्षमार्ग की पूर्णता ____ उत्तर – हाँ ! हाँ !! शास्त्र का आधार भी हैं, वह आधार हम आपके सामने तत्काल प्रस्तुत भी करेंगे। शास्त्र के आधार बिना हम कुछ भी कथन नहीं करते हैं। . आचार्यकल्प पण्डित टोडरमलजी ने मोक्षमार्गप्रकाशक शास्त्र के सातवें अध्याय के पृष्ठ क्रमांक २२८ पर संवरतत्त्व के अन्यथारूप प्रकरण में इसका स्पष्ट उल्लेख किया है, वह इसप्रकार है - ८०. "प्रश्न-मुनियों के एक काल में एक भाव होता है, वहाँ उनके बन्ध भी होता है और संवर-निर्जरा भी होते हैं, सो किस प्रकार है ? उत्तर - वह भाव मिश्ररूप है। कुछ वीतराग हुआ है, कुछ सराग रहा है। जो अंश वीतराग हुआ उससे संवर है और जो अंश सराग रहा उससे बन्ध है।" ___ आचार्य अमृतचन्द्र रचित आत्मख्याति टीका में कलश ११० द्वारा मिश्रधारा का विवेचन बहुत स्पष्टरूप से किया है। अतः आगे मूल संस्कृत कलश रूप काव्य, उसका डॉ. हुकमचन्दजी भारिल्ल कृत हिंदी पद्यानुवाद एवं पण्डित जयचन्दजी छाबड़ा द्वारा लिखित अर्थ एवं भावार्थ-सब दे रहे हैं, जिससे आपकी शंका का समाधान हो जायेगा। . (शार्दूलविक्रीडित) "यावत्पाकमुपैति कर्मविरतिर्ज्ञानस्य सम्यङ् न सा कर्मज्ञानसमुच्चयोऽपि विहितस्तावन्न काचित्क्षतिः। किन्त्वत्रापि समुल्लसत्यवशतो यत्कर्म बंधाय तन् मोक्षाय स्थितमेकमेव परमं ज्ञानं विमुक्तं स्वतः॥ (हरिगीत) यह कर्मविरति जबतलक ना पूर्णता को प्राप्त हो। हाँ, तबतलक यह कर्मधारा ज्ञानधारा साथ हो॥ अवरोध इसमें है नहीं पर कर्मधारा बंधमय। मुक्तिमारग एक ही है, ज्ञानधारा मुक्तिमय॥ १. मोक्षमार्गप्रकाशक पृष्ठ-२२८
SR No.007126
Book TitleMokshmarg Ki Purnata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherTodarmal Smarak Trust
Publication Year2007
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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