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________________ सम्यक्चारित्र की पूर्णता वह बदल जाती है; किन्तु किसी भी अवस्था में परमाणु अपने परमाणुपन को नहीं छोड़ता, क्योंकि वह वस्तु है - द्रव्य है। • द्रव्य का अर्थ है वस्तु। . • वस्तु की वर्तमान अवस्था को पर्याय कहते हैं। • द्रव्य अंशी (संपूर्ण वस्तु) है और पर्याय उसका एक अंश है। • अंशी को सामान्य कहते हैं और अंश को विशेष कहते हैं। • इस सामान्य-विशेष को मिलाकर वस्तु का अस्तित्व है। सामान्य-विशेष के बिना कोई सत् पदार्थ नहीं होता। ... • सामान्य ध्रुव है और विशेष उत्पाद-व्यय हैं - "उत्पाद-व्यय ध्रौव्यंयुक्तं सत्"। • जो वस्तु एक समय में है, वह वस्तु त्रिकाल है; क्योंकि वस्तु का __नाश नहीं होता; किन्तु वस्तु का रूपान्तर होता है। • वस्तु अपनी शक्ति से (सत्ता से-अस्तित्व से) स्थिर रहती है, उसे कोई पर वस्तु सहायक नहीं होती। यदि इसी नियम को सरल भाषा में कहा जाये तो - एक द्रव्य दूसरे द्रव्य का कुछ भी नहीं कर सकता। ७८. प्रश्न - यह सब किसलिए समझना चाहिये? उत्तर- अनादिकाल से चले आ रहे अनन्त दुःख के नाश के लिए एवं महापापरूप मिथ्यात्व को दूर करने के लिए यह सब समझना आवश्यक है। यह समझ लेने पर आत्मस्वरूप की यथार्थ पहिचान हो जाती है और सम्यग्दर्शन प्रगट हो जाता है तथा सच्चा सुख प्रगट हो जाता है; इसलिये इसे भलीभाँति समझने का प्रयत्न करना चाहिए।" ७९. प्रश्न - साधक जीवन में मिश्रधारा होती है, ऐसा आपने बताया; इसके लिए कुछ शास्त्र-आधार भी हैं क्या ? १. सम्यग्दर्शन पृष्ठ २१७-२२१
SR No.007126
Book TitleMokshmarg Ki Purnata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherTodarmal Smarak Trust
Publication Year2007
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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