________________
83
सम्यक्चारित्र की पूर्णता • कुछ मुनिराज मोक्ष जाने के पहले-पहले चार बार उपशम श्रेणी
मांडकर औपशमिक चारित्रवंत हो जाते हैं और फिर नियम से
क्षपक श्रेणी मांडकर मुक्त हो जाते हैं। • कुछ साधक ऐसे भी होते हैं, जिन्होंने सम्यक्त्व के साथ
सम्यक्चारित्र तो उत्पन्न किया फिर मिथ्यादृष्टि हो गये। तदनंतर मिथ्यात्व अवस्था में एक अन्तर्मुहूर्त कम अथवा चौदह उपअंतर्मुहूर्त कम अर्द्धपुद्गलपरावर्तन काल पर्यंत रहे। अन्तिम मनुष्यभव के अन्तिम एक अन्तर्मुहूर्त में ही औपशमिक, क्षायोपशमिक तथा क्षायिक सम्यक्त्व, सम्यक्चारित्र, मुनिजीवन योग्य चारित्रपूर्वक क्षपक श्रेणी पर आरोहण कर पूर्ण चारित्र विकसित कर सिद्ध अवस्था प्राप्त कर लेते हैं।
६९. प्रश्न - म्यारहवें गुणस्थान पर्यंत चारित्र विकसित होने के बाद भी उनका नीचे पतन होना और परंपरा से निगोद में भी गमन हो जाना - यह बात कुछ समझ में नहीं आती और योग्य भी नहीं लगता। एक बार मोक्षमार्ग प्राप्त हुआ तो सीधे भगवान बन जाना ही योग्य लगता है। यह सब उत्थान-पतन, फिर उत्थान एवं पूर्णता - ऐसा नहीं होना चाहिए। व्यर्थ ही दुःखी होते हुए क्यों अटके क्यों भटके? . ___ उत्तर - हे भाई ! आप उत्थान अर्थात् विकास के बाद जब तक पूर्णता न हो, तब तक लगातार विकास ही विकास चाहते हो, यह आपकी भावना हमें समझ में आ गयी। आपकी भावना तो सर्वोत्तम है; किन्तु वस्तु-व्यवस्था अथवा जीव के मोहोदय के निमित्त पुरुषार्थ की हीनता/शिथिलता अथवा जीव का पुरुषार्थ मेरे-आपके विचार तथा अभिप्राय के अनुसार नहीं होता। वस्तु व्यवस्था जैसी है, वैसी ही हमें स्वीकृत होनी चाहिए।