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________________ मोक्षमार्ग की पूर्णता • ऐसे बहुत कम जीव होते हैं, जिनके जीवन में सम्यक्चारित्र उत्पन्न होने पर वे पतित न होकर सीधे उसी भव से सिद्ध हो जाते हैं। • ऐसे जीव ही अधिक होते हैं, जिनके जीवन में एक बार सम्यक्चारित्र उत्पन्न हुआ और वे उससे रहित हो गये । सम्यक्त्व प्राप्त होते ही सम्यक्चारित्र तो उत्पन्न हुआ; लेकिन सम्यक्त्व छूटते ही सम्यक्चारित्र भी नियम से छूट जाता है। अनेक साधक ऐसे भी होते हैं, जो सम्यक्त्व एवं सम्यक्चारित्र के साथ देशविरत गुणस्थानपर्यंत ही चारित्र बढ़ा पाते हैं और फिर संयमासंयम चारित्र को छोड़कर भी मात्र अविरत सम्यग्दृष्टि ही अनेक भवों तक रहते हैं तथा मिथ्यादृष्टि भी हो जाते हैं। कुछ साधक ऐसे भी होते हैं, जिन्होंने सामान्य मुनि जीवन अर्थात् छठवें-सातवें गुणस्थान योग्य चारित्र को विकसित किया, फिर उनका वह चारित्र छूट गया और अविरत सम्यक्त्वी रह गये अथवा मिथ्यादृष्टि भी हो गये । 82 • कुछ साधक तो ग्यारहवें गुणस्थान पर्यंत पूर्ण वीतरागरूप चारित्र को प्राप्त करके यथाख्यात औपशमिक चारित्रवंत होते हैं और फिर पतित होकर मिथ्यात्वी भी हो जाते हैं । ग्यारहवें गुणस्थान से पतित होकर संसार में ही कुछ काल पर्यंत अटक जाते हैं। जैसे - भगवान महावीर के जीव ने शेर की पर्याय के पूर्व अनेक भवों के पहले सम्यक्त्व पाकर अर्द्धचक्रवर्तित्व एवं नारायण पद भी प्राप्त किया था। ग्यारहवें गुणस्थान पर्यंत विकास भी किया, फिर भी परम्परा से निगोदावस्था को प्राप्त किया था। ऐसे उत्थान के बाद पतित होनेवाले जीव भी अनेक होते हैं। परिणामों की ऐसी ही विचित्रता है। • साधक मोक्ष जाने के पहले भावलिंगी मुनिपना अधिक से अधिक बत्तीस बार प्राप्त कर सकते हैं और उसके पश्चात् नियम से मुक्त हो जाते हैं।
SR No.007126
Book TitleMokshmarg Ki Purnata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherTodarmal Smarak Trust
Publication Year2007
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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