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________________ 62. मोक्षमार्ग की पूर्णता • यदि क्षायिक सम्यक्त्वरूप पर्याय, ज्ञान को क्षायिक बना सके तो चौथे गुणस्थान में ही केवलज्ञान होना चाहिए; किन्तु केवलज्ञान तो तेरहवें गुणस्थान में ही होता है, यह बात आगम के अभ्यासी अच्छी तरह से जानते हैं। . यदि क्षायिक सम्यक्त्व ही चारित्र को क्षायिक बनाने में समर्थ हो तो बारहवें गुणस्थान में होनेवाला क्षायिक चारित्र चौथे गुणस्थान में होना आवश्यक होगा; लेकिन ऐसा होता नहीं है। प्रथमानुयोग के शास्त्रों में हम यह भी पढ़ते हैं किश्रेणिक राजा को क्षायिक सम्यक्त्व था, तथापि उसे देशसंयम भी नहीं था, तब क्षायिक चारित्र की बात कैसे करें ? • श्रेणिक राजा का ज्ञान भी मति-श्रुतरूप अल्प ही था। उपर्युक्त कथन से प्रत्येक पाठक को यह सहज और स्पष्ट समझना चाहिए कि एक गुण की सम्यक् पर्याय अन्य गुण की पर्याय में कुछ भी करने के लिए समर्थ नहीं है। __ जहाँएकजीवद्रव्य में रहनेवाली श्रद्धा गुण की क्षायिकसम्यक्त्वरूप पर्याय, उसी जीव द्रव्य के ज्ञान एवं चारित्र गुण की पर्याय में कुछ भी करने के लिए समर्थ नहीं है, वहाँ कोई मनुष्य-देश, समाज, संस्था, घर, शरीर इत्यादि का अच्छा या बुरा कर सकता है क्या ? अर्थात् नहीं कर सकता। परन्तु मात्र अज्ञानवश कल्पना करता है। अतः सबका मात्र ज्ञाता रहना ही जीव का स्वभाव व पुरुषार्थ है। ४३. प्रश्न-सम्यग्दर्शन से ही ज्ञान चारित्र में सम्यक्पना होता हैऐसा नियमरूप कथन शास्त्रों में सर्वत्र मिलता है। सभी विद्वान भी ऐसा ही कथन करते हैं; यह कथन आपको मान्य है या नहीं ? उत्तर - श्रद्धा सम्यक् होते ही सभी गुणों में सम्यक्पना आता है, ऐसा शास्त्र-कथन निमित्त-नैमित्तिक संबंध का ज्ञान कराने के लिए किया जाता है, तथापि सूक्ष्मता से विचार किया जाए तो यह व्यवहारनय का उपचरित कथन है - स्थूल कथन है, वास्तविक नहीं।
SR No.007126
Book TitleMokshmarg Ki Purnata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherTodarmal Smarak Trust
Publication Year2007
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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