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________________ सम्यग्ज्ञान की पूर्णता ____61 • हाँ, यह बात सत्य है कि यदि किसी जीव के विपुलमति मन:पर्ययज्ञान ____ हो तो उस जीव को उसी भव से केवलज्ञान उत्पन्न होता ही है। ४१. प्रश्न - विपुलमति मन:पर्ययज्ञान अप्रतिपाति है; अतः वह केवलज्ञान को उत्पन्न कराता ही है - क्या यह कथन सत्य है ? ___ उत्तर - यह कथन व्यवहारनय की अपेक्षा सत्य है, निश्चयनय की अपेक्षा से नहीं; क्योंकि अत्यल्पज्ञान पर्याय सर्वज्ञरूप पूर्ण ज्ञानपर्याय को कैसे उत्पन्न कर सकती है ? __वास्तविक रूप से विचार किया जाय तो एक समयवर्ती कोई भी अनंतरपूर्व-समयवर्ती पर्याय अन्य उत्तरक्षणवर्ती पर्याय को उत्पन्न नहीं कर सकती। जो पर्याय स्वयं नष्ट हो रही हो; मर रही हो; वह दूसरों को कैसे उत्पन्न कर सकती है ? निश्चित ही उत्पन्न नहीं कर सकती। केवलज्ञान पर्याय तो ज्ञान का घनपिण्ड जीवद्रव्य में से अथवा ज्ञानगुण में से उत्पन्न होती है। जैसा वस्तु का सही स्वरूप है, उसे वैसा ही जानना चाहिए। __ आचार्यश्री नेमीचन्द्र ने गोम्मटसार (जीवकाण्ड) गाथा ६९ में केवलज्ञान को असहाय विशेषण से स्पष्ट किया है; यह भी हमें समझना आवश्यक है। आचार्यश्री नेमिचंद्र ने गोम्मटसार (जीवकाण्ड) गाथा ६९ में केवलज्ञान को असहाय विशेषण से स्पष्ट किया है; यह भी हमें समझना आवश्यक है। वास्तविकरूप से सोचा जाय तो क्षायिक अर्थात् पूर्ण निर्मल/ सर्वथा शुद्ध ऐसी श्रद्धा की सम्यक् पर्याय भी ज्ञान अथवा चारित्र को क्षायिक करने में असमर्थ है। ४२. प्रश्न - यह कैसे? उत्तर – गुणस्थान के अनुसार देखा जाय तो चौथे गुणस्थान में ही क्षायिक सम्यक्त्व हो सकता है। जैसे- श्रेणिक राजा को गृहस्थ जीवन में भी क्षायिक सम्यक्त्व हो गया था।
SR No.007126
Book TitleMokshmarg Ki Purnata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherTodarmal Smarak Trust
Publication Year2007
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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