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________________ 58 मोक्षमार्ग की पूर्णता यदि मनुष्य अथवा तिर्यंच गति से सम्यक्त्व के साथ नरक, तिर्यंच वा देवगति में जीव उत्पन्न होता है तो भी ये तीनों ज्ञान सम्यक् ही रहते हैं। यदि मनुष्य या तिर्यंचगति में सम्यक्त्व उत्पन्न होता है तो उनके मति श्रुतज्ञान सम्यक्रूप परिणत हो जाते हैं। • यदि मनुष्य या तिर्यंच संयमासंयमी हो तो कदाचित् उन्हें भी मतिश्रुत-अवधि तीनों ज्ञान सम्यकरूप हो सकते हैं। • यदि मनुष्य, मुनि बनकर चारित्र विकसित करते हैं तो उन्हें मतिश्रुत- -अवधि के साथ मन:पर्यय ज्ञान तथा अंत में मात्र एक केवलज्ञान भी उत्पन्न हो सकता है । पाँचों ज्ञान किसी भी जीव को कभी भी एक साथ नहीं रहते । ३९. प्रश्न - केवलज्ञान होने के पहले मति आदि चारों ज्ञान होना ही चाहिए - यह नियम है क्या ? उत्तर - नहीं, केवलज्ञान होने के पहले तीन अथवा चार ज्ञान होने का कोई नियम नहीं है, मात्र अल्प मति - - श्रुतज्ञान होने पर भी इन दोनों ज्ञान के अभावपूर्वक पूर्णज्ञान अर्थात् केवलज्ञान हो सकता है। जैसे - शिवभूति आदि अनेक मुनिराज अत्यल्प मति - श्रुत - ज्ञान होने पर भी केवलज्ञानी हो गये हैं। • केवलज्ञान की उत्पत्ति के लिए पूर्ण वीतराग होना अनिवार्य है; लेकिन अवधि - मन:पर्ययज्ञान की अनिवार्यता भी नहीं है और उनकी उपयोगिता भी नहीं है; क्योंकि ये दोनों ज्ञान मात्र पुद्गल को ही जानते हैं। ज्ञान गुण के परिणमन का अपना कार्य स्वतंत्र है। उसके लिए पूर्ण वीतरागता चाहिए - यह भी व्यवहार सापेक्ष कथन है। ४०. प्रश्न - केवलज्ञान के लिए वीतरागता चाहिए - यह कथन व्यवहार सापेक्ष भी क्यों है ?
SR No.007126
Book TitleMokshmarg Ki Purnata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherTodarmal Smarak Trust
Publication Year2007
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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