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________________ सम्यक्त्व की पूर्णता आती। थकान तो कषाय के कार्यों से होती है। ज्ञान तो जीव का अनुजीवी गुण है और जीव का मात्र जानना स्वाभाविक कार्य है - स्वभाव है। स्वभाव में थकान कैसे ? थकान तो विभाव में होना स्वाभाविक है। जिससे थकावट आती है, कष्ट का अनुभव होता है वह कभी स्वभाव नहीं हो सकता। ___ जीव निरन्तर जानने का काम तो कर सकता है; तथापि एक भी कषाय-नोकषायरूप परिणमन को सतत् करते रहना किसी भी जीव को असंभव है। कषाय-नोकषायरूप परिणामों को करते हुए मोहरूप से परिणत होते रहना, यह अपराध तो अज्ञानी अनादि से ही करता आ रहा है; तथापि किसी भी एक कषाय-नोकषायरूप विकारी भाव को अन्तर्मुहूर्त काल से अधिक काल पर्यंत कर ही नहीं सकता। कोई जीव आधे घंटे तक क्रोधादि मात्र एक कषाय अथवा एक ही नोकषायरूप परिणाम नहीं कर सकता। इष्ट-अनिष्टरूप कल्पना करना भी राग मिश्रित ज्ञान का कार्य है। श्रद्धेय वस्तु में मग्न होना, लीन हो जाना- यह चारित्र का कार्य है। श्रद्धा की सम्यक्त्वरूप पर्याय को किसी भी विशेषण से कहा जाये तो भी सम्यक्त्व अपनी उत्पत्ति के समय से ही अपने ही स्वभाव से वह पूर्ण ही रहता है। सम्यग्ज्ञान तथा सम्यक्चारित्र की पर्यायों के समान सम्यक्त्व कभी हीन अथवा अधिक होता ही नहीं, वह हमेशा पूर्ण ही रहता है; यह स्वीकारना यथार्थ है। २६. प्रश्न : क्षायोपशमिक सम्यक्त्व में चल, मल, अगाढ़ दोष भी लगते हैं। अत: ऐसी स्थिति में क्षायोपशमिक सम्यक्त्व तो नियम से अपूर्ण ही होना चाहिए तथापि आप उसे भी पूर्ण ही कहते हो, यह कैसे? उत्तर : चल, मल, अगाढ़ ये तीनों दोषतोसम्यक्प्रकृति दर्शनमोहनीय कर्म के निमित्त से उत्पन्न होने की बात शास्त्र में आयी है, जो सत्य ही है। हम सूक्ष्मता से विचार करते हैं तो क्षायोपशमिक सम्यक्त्व के दोष
SR No.007126
Book TitleMokshmarg Ki Purnata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherTodarmal Smarak Trust
Publication Year2007
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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