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________________ मोक्षमार्ग की पूर्णता रहता है। उपर्युक्त कारणों से औपशमिक सम्यक्त्व पूर्ण ही है, अपूर्ण नहीं । आत्मा में अनंत गुण हैं । उनमें प्रत्येक गुण का कार्य / स्वरूप / लक्षण नियम से भिन्न-भिन्न ही रहता है। 40 ज्ञान गुण के द्वारा निर्णीत वस्तु का विश्वास / प्रतीति करना, श्रद्धान करना, भरोसा करना श्रद्धा का कार्यक्षेत्र है । श्रद्धा गुण का काम वस्तु-स्वरूप का निर्णय करना, निश्चय करना, हेय-उपादेय का विचार करना आदि कार्य नहीं है - यह कार्य तो मात्र ज्ञान का है। ज्ञान, जिस वस्तु को कल्याणदायक, सुखदाता, आत्म हितकारकरूप निर्णय करता है; उसको मात्र स्वीकारना, श्रद्धा गुण का कार्य है; अन्य कुछ काम नहीं । वास्तविक रूप से सोचा जाये तो मिथ्यात्वरूप परिणाम के लिए श्रद्धेयरूप वस्तु भी ज्ञान द्वारा ही दिया जाता है। अनादि से ज्ञान ही मिथ्यात्व का पोषक एवं शोषक है। मिथ्यात्व अवस्था में भी जीव को मिथ्या श्रद्धेय विषय तो एक ही रहता है। श्रद्धा का विषय तो हमेशा समान्य ही रहता है। अज्ञानी अपने अज्ञान से अपने श्रद्धेय विषय को बार-बार बदलता तो रहता है; तथापि जब भी जिस किसी भी वस्तु का श्रद्धान करता है तब विषय संख्या में एक ही एक रहेगा, यह निश्चित है। एक काल में अनेक वस्तुओं का श्रद्धान करना बनता ही नहीं । ज्ञान गुणका कार्य / स्वरूप ही अलग है - ज्ञान जानेगा तो हमेशा अनेकों को जानेगा। ज्ञान का ज्ञेय एक विषय / पदार्थ बने, ऐसा कभी नहीं हो सकता । ज्ञान जानेगा तो अनेकों को जानेगा। हिताहित का विचार करेगा, निर्णय करेगा - जानता ही रहेगा । जानने में ज्ञान को अर्थात् जीव को कभी भी भार / थकान नहीं
SR No.007126
Book TitleMokshmarg Ki Purnata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherTodarmal Smarak Trust
Publication Year2007
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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